दैहिक शोषण की शिकार महिलाओं की संख्या में गिरावट की बजाय, दुर्भाग्य से उसमें इजाफा ही हो रहा है। यहां तक कि खास वर्ग की महिलाओं और लड़कियों के साथ बलात्कार की घटनाएं भी बढ़ रही हैं। नाबालिग लड़कियों के साथ रेप आये दिनों की बात हो चुकी है, सामूहिक बलात्कार भी सुर्खियों में हैं। गांव ही नहीं, छोटे-बड़े शहरों की गलियों से लेकर खेतों तक में लड़कियां शिकार बनायी जा रही हैं
अपने सूबे का सरदार कौ न है, रसूखवाले इस बात की परवाह नहीं करते। अगर करते होते, तो अब तक उत्तर प्रदेश में दलित लड़कियों के साथ दबंगई की इफरात वारदातें हो चुकी हैं और नई-नई सिर उठा रही हैं
दलितों का प्रतिनिधित्व करने वाली मुख्यमंत्री (बहन मायावती) के राज (उत्तर प्रदेश) में दलित महिलाएं ही सुरक्षित नहीं हैं, सुनकर थोड़ा अजीब लगता है। राज्य में शायद ऐसा कोई गांव-शहर नहीं बचा है, जहां यौन हिंसा की शिकार लड़कियां, न्याय और कानून-व्यवस्था पर सवाल नहीं उठा रही हों, ऐसी घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, दलितों पर अत्याचार (हत्या, हिंसा,यौन-हिंसा) में उत्तर प्रदेश पूरे भारत में सबसे आगे है। हालांकि महिला मुख्यमंत्री, शीला दीक्षित की दिल्ली में भी यौन हिंसा के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। सवाल है कि दलित महिला मुख्यमंत्री के राज में भी दलितों (लड़के और लड़कियों) के साथ ही अत्याचार- अन्याय क्यों हो रहा है? पुलिस क्यों नहीं सुनती? पुलिस दलितों को क्यों डराती-धमकाती है? मुकदमा दर्ज करने की बजाय, समझौता करने का दबाव क्यों डालती है? दलितों पर अत्याचार के आरोपियों को सजा क्यों नहीं मिलती? दलित लड़कियों से बलात्कार या बलात्कार के बाद हत्या के अनेक मामला सामने हैं। फतेहपुर में तीन लो गों ने दलित कन्या को बलात्कार का शिकार बनाने की कोशिश की और विरोध करने पर लड़की के हाथ, पांव और कान काट डाले। पीड़ित कानपुर के अस्पताल में मौत से जूझ रही है। जैसाकि अमूमन होता है, पारिवारिक झगड़े और रंजिश का बदला मासूम-निर्दोष लड़की की अस्मत से लिया गया। बांदा बलात्कार मामले में आरोपी विधायक पुरुषोत्तम नरेश द्विवेदी ने तो दलित नाबालिग लड़की को मामूली चोरी के इल्जाम में जेल ही भिजवा दिया था। बांदा बलात्कार मामला अभी सुलझा भी नहीं था कि लखनऊ के चिनहट इलाके में ईट-भट्ठे के पीछे एक और दलित लड़की की लाश पड़ी मिली। लड़की की बलात्कार के बाद, उसी के दुपट्टे से गला घोंटकर हत्या कर दी गई। शिवराजपुर गांव की सोलह वर्षीय नाबालिग दलित लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार का मामला भी प्रकाश में आया है। बिराज्मार गांव की 8 साल की दलित बालिका की दरिंदों ने बलात्कार के बाद हत्या की परंतु महीनों कोतवाल ने कोई कार्रवाई तक नहीं की, उल्टे घरवालों को ही डराना-धमकाना और गुमराह करना जारी रहा। कन्नौज जिले के सौरिख क्षेत्र में बीस वर्षीय दलित लड़की गांव से बाहर खेत में गई थी, जहां तीन युवकों ने उसके साथ बलात्कार किया। बाराबंकी में नौंवी क्लास की नाबालिग लड़की से बलात्कार किया गया ले किन पुलिस ने सिर्फ छेड़छाड़ का मामला दर्ज किया। सुल्तानपुर के दोस्तपुर इलाके में एक महिला को जिंदा जलाने की कोशिश की गई, जिसका अस्पताल में इलाज चल रहा है। मुरादाबाद और झांसी में बलात्कार की शिकार हुई लड़कियों ने खुद को आग लगा ली। कानपुर और लखनऊ में भी बलात्कार की शिकार दो नाबालिग लड़कियां मौत की नींद सो गई। ठेकमा (आजमगढ़) कस्बे में सोमवार की रात करीब 12 बजे चार बहशी दरिंदों ने दलित के घर में घुसकर वहां सो रही 28 वर्षीया मंद-बुद्धि युवती की इज्जत लूट ली। ठाकुरद्वारा (मुरादाबाद) के गांव कंकरखेड़ा में दो युवकों ने तमंचों के बल पर दलित युवती से बलात्कार किया। सलेमपुर (देवरिया) में दलित युवती के साथ तीन दरिंदों ने दुपट्टे से हाथ- पैर बांध कर सामूहिक दुष्कर्म किया, पर पुलिस एक सप्ताह तक मामले पर पर्दा डालती रही। मैनपुरी के ग्राम नगला देवी में कामांध युवक ने दलित नाबालिग युवती, जो अपने घर से गांव स्थित परचून की दुकान से कपड़ा धोने का साबुन लेने गयी थी, से बलात्कार किया और एटा के बागवाला क्षेत्र में कुछ युवकों ने तमंचे के बल पर महिला की अस्मत लूट ली। यह सिर्फ संक्षेप में कुछ ही दुर्घटनाएं हैं..विस्तृत आंकड़ों में जाने की जरूरत नहीं। सैकड़ों मामले तो ऐसे भी हैं, जिनमें सामूहिक बलात्कार की शिकार दलित या आदिवासी लड़कियों को डरा-धमका कर (या 1000-2000 रुपए देकर) हमेशा के लिए चुप करा दिया गया। मां-बाप को गांव से बाहर करने और जेल भिजवाने की धमकी देकर, पुलिस और गुंडों ने सारा मामला ही दफना दिया। अखबारों में छपी तमाम खबरें झूठी साबित हुई..पत्रकारों पर मानहानि के मुकदमें दायर किये गए, गवाहों को खरीद लिया गया और न्याय- व्यवस्था की आंखों में धूल झोंक कर अपराधी साफ बच निकले। ‘माथुर’ से लेकर ‘भंवरी बाई’ केस के शर्मनाक फैसले अदालतों से समाज तक बिखरे पड़े हैं। सत्ता में लगातार बढ़ रहे दलित वर्चस्व के कारण, आहत और अपमानित कुलीन वर्ग के हमले, दलित स्त्रियों के साथ हिंसा या यौन हिंसा के रूप में बढ़ रहे हैं। समाज और नौकरशाही में अब भी कुलीन वर्ग का बोलबाला है। राजनीति में अपनी हार का बदला, दलितों पर अत्याचार के माध्यम से निकाला जा रहा है। दोहरा अभिशाप झेलती दलित स्त्रियां इसलिए भी बेबस और लाचार हैं, क्योंकि उनके अपने नेता, सत्ता-लोलुप अंधेरे और भ्रष्टाचार के वट- वृक्षों के मायाजाल में उलझ गए हैं। ऐसे दहशतजदा माहौल में, आखिर दलित स्त्रियों की शिकायत कौन सुनेगा और कैसे होगा इंसाफ? (लेखक स्त्रीवादी और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील हैं)