गोरखपुर। सचमुच, इंद्रावती के हौसले का जवाब नहीं है। अफसरों से लड़ते भिड़ते 80 महिलाओं का जॉब कार्ड और उन्हें नियमित काम दिलाकर इस अनपढ़ महिला ने नारी सशक्तिकरण की अनूठी मिसाल पेश की है। अब हाल यह है कि इंद्रावती का नाम सुनते ही अफसर कांप उठते हैं। डरते हैं कि कहीं फिर शासन से जांच न बैठ जाए। मनरेगा के स्टेट हेल्पलाइन को उसने प्रशासनिक कामकाज के खिलाफ बतौर हथियार इस्तेमाल किया है।
आप सोच रहे होंगे कि इंद्रावती कोई वीआईपी महिला है। जी नहीं, वह कैंपियरगंज के कुंजलगढ़ गांव की ऐसी गरीब महिला है जिसने स्कूल का मुंह तक नहीं देखा। लेकिन उसके इरादे चट्टान की तरह मजबूत हैं। क्षेत्र की महिलाएं उसे मुखिया कहकर पुकारती हैं और उसकी आवाज पर महिलाओं की फौज खड़ी हो जाती है। इंद्रावती के काम कराने का तरीका बिलकुल अलग है। यदि किसी का जॉब कार्ड नहीं बन रहा है तो वह स्टेट लेवल हेल्प लाइन पर फोन करती हैं। किसी भी तरह की दिक्कत को वह हेल्प लाइन के जरिए शासन तक पहुंचा देती हैं। इसके बाद लोकल स्तर पर अफसरों के पास पैरवी शुरू कर देती है। शासन के अलंबरदार भी उसकी बात को नजरअंदाज नहीं करते हैं। यही कारण है कि उसके गांव में तमाम गड़बड़ियां दूर हो गई हैं।
इंद्रावती को दूसरे के लिए लड़ने में हिचक नहीं होती। वह कहती हैं कि तीन साल पहले अपना जॉब कार्ड बनवाने के लिए जब गांव के प्रधान के पास गई तो उन्होंने डांट कर भाग दिया। बोले महिलाओं का जॉब कार्ड नहीं बनता है। एक गोष्ठी में इंद्रावती भाग लेने तहसील गई तो वहां लघु सीमांत किसान मोर्चा के लोगों ने मनरेगा के हेल्प लाइन का नंबर दिया और संपर्क करने को कहा। बस क्या था, इंद्रावती ने इस हेल्प लाइन को ऐसा हथियार बनाया कि प्रशासनिक अमले में हलचल मच गई। अफसरों ने प्रधान पर दबाव बनाया तो इंद्रावती का जॉब कार्ड बन गया। लेकिन इंद्रावती ने जॉब कार्ड लेने से मना कर दिया। उसने कहा कि पूरे गांव की महिलाओं का जॉब कार्ड बनना चाहिए। साल भर तक उसने ब्लाक से लेकर प्रधान और सेक्रेटरी से संपर्क किया। कोई फायदा नहीं हुआ तो फिर उसने हेल्प लाइन का सहारा लिया। हर सप्ताह वह हेल्प लाइन पर अपनी रिपोर्ट बताती रहीं। अधिकारियों को डांट मिली। सेक्रेटरी और प्रधान ने गांव की महिलाओं को बुलाकर जॉब कार्ड बनवाना शुरू किया।
अब इंद्रावती कहती हैं कि जॉब कार्ड तो बन गया है लेकिन अब सबको बराबर काम मिलना चाहिए। अगर काम नहीं मिलता है तो रोजगार भत्ता मिले। कहती हैं, कुछ भी हो हम लोग अपना हक लेकर रहेंगे। गांव की महिलाएं इस महिला से कदम मिलाकर चलती हैं।
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