Thursday, January 13, 2011

स्त्री शक्ति और मुक्ति पर उठते सवाल

समाज के ठेकेदारों के मन में स्त्री शक्ति और मुक्ति को लेकर अनेक रहस्य व्याप्त हैं। जैसे कि आज की नारी को इतनी आजादी मिल गई है कि वह काबू में नहीं है, नारियों के लिए विधायिका कुछ ज्यादा ही लचीला व्यवहार अपना रही है। नारी ने जिस तरह से खुद को इस पितृसत्तात्मक समाज के सामने पेश किया है, उससे उन्हें अपनी सत्तात्मक दीवार हिलती नजर आ रही है। यह पुरुष सत्तात्मक समाज माने या न माने लेकिन बिना स्त्री के सहयोग के वे खुद को समाज में स्थापित करने में असमर्थ रहे हैं। आज के समाज का कोई भी क्षेत्र स्त्रियों से अछूता नहीं है चाहे वह प्रशासन हो, खेल हो, कॉरपोरेट सेक्टर हो, सेना हो, विज्ञान हो। भारत की पहली महिला राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल, भारत की प्रथम महिला आईपीएस किरण बेदी, बैडमिंटन सनसनी सायना नेहवाल, चंदा कोचर, सोनिया गांधी, अंजू बॉबी जार्ज, ऐर्या राय, कल्पना चावला, प्रथम लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार, महादेवी वर्मा, सुभद्रा कुमारी चौहान जैसी मिसालें हमारे सामने हैं। आजादी की लड़ाई में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान था। गांधी जी ने नारी शक्ति को पहचाना और आंदोलनों में उनकी प्रत्यक्ष भागीदारी को प्राथमिकता दी। क्रांतिकारी आंदोलनों में भी महिलाओं ने हिस्सा लिया। अब की आधुनिक महिला अपने अधिकारों और मूल्यों को लेकर जागरूक है। पहले वे अधीन एवं दिशाहीन थी। लेकिन सवाल यह है कि महिलाओं को अनेक अधिकार मिलन के बाद भी क्या वे स्वतंत्र एवं सुरक्षित हैं? जेसिका लाल हत्याकाण्ड, मधुमिता काण्ड, प्रियदर्शिनी मट्टू हत्याकाण्ड, आरुषि हत्याकाण्ड, निठारी कोठी काण्ड ऐसे अनेक उदाहरण हैं जो आज भी स्त्रियों की दयनीय स्थिति को प्रकट कर रहे हैं। यह वही समाज है जो एक तरफ सित्रयों के पक्ष में लिव इन रिलेशनशिप का अधिकार देता है और दूसरी तरफ ऑनर किलिंग पर अंकुश लगाने में असमर्थ रहा है। शायद ही कोई लड़की हो जिस पर छींटाकशी न की गई हो, शायद ही कोई महिला हो जो किसी पुरुष के अधीन न हो। शायद ही कोई क्षेत्र हो जहां रात और दिन में महिलाएं स्वच्छंद होकर विचरण कर सकती हों, शायद ही कोई कार्यस्थल हो जहां महिलाओं को लेकर राजनीति न होती हो। इन सभी सवालों के होते हुए भी यह पुरुष सत्तात्मक समाज अपने को महिलाओं को बराबरी का हक देने का दिखावा करता है, यह कहां तक सही है? इस स्थिति में अगर समाज की कुछ बुद्धिजीवी महिलाएं अपने को बराबरी पर लाने के लिए आवाज बुलंद करती है तो पुरुष वर्ग को सुई चुभ जाती है और वह तरह-तरह के बहाने से महिलाओं की आवाज को दबाने की जुगतमें लग जाते हैं। पु रुष वर्ग को अपनी मुंह में राम, बगल में छुरीकी नीति को बंद करना होगा। साथ ही, अगर वास्तविकता में महिलाओं के शोषण को बंद करना चाहते हैं, उन्हें बराबरी पर लाना चाहते हैं तो महिलाओं के प्रति अपनी संकुचित सोच को बदलिए।

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