नए साल में कहा जा रहा है कि देश में हर क्षेत्र में तरक्की के रास्ते खुलने वाले हैं। इस साल शिक्षा, बुनियादी ढंkचा क्षेत्र, ऑटो, और वित्तीय जैसे तमाम क्षेत्रों में नौकिरयां बरसेंगी। पर जहां तक आधी आबादी का सवाल है, उसके हिस्से इन क्षेत्रों में कितनी नौकरियां मिलेगीं यह देखना महत्वपूर्ण होगा। महिला आरक्षण बिल का भी सवाल है, बीते साल 9 मार्च को राजद, समाजवादी पार्टी, जद यू के विरोध के बावजूद 33 प्रतिशत आरक्षण बिल राज्यसभा में पारित तो हो गया, लेकिन इसे लोकसभा में पारित कराने की कोई पहल नहीं की गई। लालू यादव, मुलायम सिंह और शरद यादव इस मांग पर अड़े हुए हैं कि जब तक आरक्षण के भीतर जातिगत आधार पर महिलाओं को आरक्षण नहीं मिल जाता तब तक मौजूदा बिल को लोकसभा में पारित नहीं होने दिया जायगा। संसद व विधानसभा में महिलाओं के लिए एक तिहाई आरक्षण की मांग 14 साल पुरानी है, लेकिन यह कब पूरी होगी? अब इस बिल संबंधी पुराने सवाल नए साल में तो कहीं फिर से सामने न आ जाएं। मसलन विरोध करने वाली राजनीतिक पार्टियों से इस फार्मूले पर समझौता न हो जाए कि एक तिहाई की जगह 20 प्रतिशत आरक्षण ही महिलाओं को दे दिया जाए। महिलाओं के राजनीतिक सशक्तीकरण के लिए एक तिहाई आरक्षण बिल को पारित कराने के लिए संघर्ष करने वाले महिला संगठनों का कहना है कि अगर ऐसा करने की कोशिश हुई तो वे हमेशा की तरह इसका विरोध करेंगी और सभी राजनीतिक दलों को बेनकाब करेंगी। क्या आधी आबादी की समुचित भागीदारी सबकी जिम्मेवारी नहीं है। यूपीए-2 सरकार इस समय घोटालों की जांच के लिए जेपीसी की विपक्ष की मांग को लेकर परेशान है, ऐसे में आने वाले समय में महिला आरक्षण बिल को लोकसभा में विरोध के बावजूद पारित कराना फिलहाल आसान नहीं दिख रहा। महिला आरक्षण बिल के अलावा देश की कामकाजी महिलाओं को इंतजार है कार्यस्थल में यौेन उत्पीड़न से संरक्षण वाले बिल का। लोकसभा में पेश हो चुका है यह बिल, लेकिन महिला अधिकारों के लिए जद्दोजहद करने वाले इन संगठनों ने ही इस विधेयक के दो-तीन महत्वपूर्ण प्रावधानों पर कड़ी आपत्ति जता कर सरकार की मंशा पर सवाल खड़े कर दिए हैं। मसलन इस विधेयक के एक प्रावधान के अनुसार हिंसा की शिकार महिला को अपने साथ हुई हिंसा के सुबूत भी खुद ही पेश करने होंगे। इसके अभाव में अपराधी को दंड देना मुश्किल होगा। यह आशंका इसलिए जताई जा रही हैं, क्योंकि इस तरह की हिंसा अक्सर अकेले में होती है। यदि कोई पुरुष महिला के शरीर को आपत्तिजनक तरीके से छूता है या उससे अकेले में अश्लील बातें करता है तो इसे साबित करने के लिए पीडि़त महिला के लिए सबूत या गवाह जुटाना आसान नहीं होता। प्रस्तावित विधेयक में शिकायतकर्ता द्वारा फर्जी या दुर्भावनाग्रस्त शिकायत करने व फर्जी दस्तावेज पेश करने पर उसके खिलाफ कार्रवाई करने की सिफारिश व सजा का प्रस्ताव है। यह प्रस्ताव उस फैसले के खिलाफ है जिसमें साफ कहा गया है कि शिकायत करने वाली महिला के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी। दफ्तरी सुरक्षा के साथ-साथ यह भी महत्वपूर्ण है कि महिलाएं घर व बाहर कितनी सुरक्षित महसूस करती हैं। अब इस मुददे को महिला अधिकार के रूप में देखा जाने लगा है। वे घर से बाहर खुद को सुरक्षित महसूस करे यह उन्हें अधिकार के रूप में मिलना चाहिए और सरकार को इसके लिए माहौल बनाना होगा। दरअसल यह एक व्यापक मुददा है और सरकार को इसी नजरिए, परिप्रेक्ष्य में समझना होगा। देश की राजधानी दिल्ली में 2010 में बलात्कार के 475 मामले दर्ज किए गए जो कि वर्ष 2009 की तुलना में ज्यादा थे। यू ंतो दिल्ली सरकार ने कहा है कि महिला अपराधों में कमी लाने के मकसद से दिल्ली में विशेष महिला अदालतों का गठन किया जाएगा जिससे लोगों में सजा का डर पैदा होगा। पुलिस आयुक्त ने पुलिस को संवेदनशील बनाने के लिए प्रशिक्षण देने की बात भी कही है। अब देखना यह है कि दिल्ली सरकार इन पर इस साल कितना अमल करती है। महिलाओं की बेहतरी की बातें करने वाली सरकार असल में क्या करती है सवाल यह भी है। हमारी आधी आबादी जिस बराबरी की हकदार है क्या उस दिशा में उचित कदम उठाए जाएंगे? बीते साल जारी वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम की ग्लोबल जेंडर रिपोर्ट 2010 ने भी हमें हमारी हकीकत बताई।
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