मेरे लिए मेरी बेटियां बोझ नहीं हैं सुप्रीमकोर्ट जजों को अपनी संपत्ति की घोषणा का जो प्रारूप बना कर देता है उसके तहत मैंने बेटियों की शादी मे होने वाले खर्च को दायित्व (लायबेलिटी) के तहत दर्ज किया है जो पूरी तरह स्वाभाविक है। अपनी संपत्ति की घोषणा से उठे विवाद से बुरी तरह आहत जस्टिस ज्ञान सुधा मिश्रा ने कहा कि अगर बेटियां बोझ होती तो वे स्वयं इस कुर्सी पर नहीं होती। सुप्रीमकोर्ट की वेबसाइट पर न्यायाधीशों दवारा स्वेच्छा से घोषित की गयी संपत्ति के ब्योरे में न्यायाधीश ज्ञान सुधा मिश्रा ने दायित्व के कालम में बेटी की शिक्षा के एजुकेशन लोन में गारंटर होना और अन्य दायित्व में दो बेटियों की शादी तथा रिटायरमेंट के बाद रहने के लिए मकान बनाने को दायित्व के तौर पर शामिल किया है। संपत्ति घोषणा का प्रारूप सुप्रीमकोर्ट ने तय किया है और उसी प्रारूप में न्यायाधीशों की अपनी संपत्ति की घोषणा करनी होती है। जस्टिस ज्ञान सुधा ने दैनिक जागरण को बताया कि दायित्व से उनका आशय खर्च से है व्यक्ति से नहीं। वे कहती हैं कि किसी के बच्चे बोझ कैसे हो सकते हैं। न तो कभी उनके माता पिता ने उन्हें ऐसा अहसास कराया और न ही वे अपनी बेटियों को बोझ समझती हैं। संपत्ति घोषणा में दर्ज ब्योरे के बारे में पिछले दिनों मीडिया में आयी खबरों पर नाराजगी और दुख जाहिर करते हुए उन्होंने कहा कि वैसे तो एक न्यायाधीश सिर्फ अपने फैसलों के माध्यम से ही बोलता है लेकिन इस घटना से वे इतनी आहत हैं कि परिस्थितियों को देखते हुए प्रतिक्रिया देना जरूरी समझती हैं। उन्होंने कहा कि किसी भी खर्च को दायित्व कहा जाएगा। उदाहरण के लिए अगर कोई व्यक्ति अपने माता पिता के इलाज पर खर्च करता है तो वह खर्च दायित्व की श्रेणी में आएगा लेकिन मातापिता बोझ नहीं हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि उनकी सिर्फ तीन बेटियां हैं। अगर बेटा होता और उस पर खर्च करना होता तो उसे भी इसी कालम में शामिल करतीं। सुप्रीमकोर्ट में एक मात्र महिला न्यायाधीश ज्ञानसुधा महिलाओं के अधिकार के लिए फैसले देने और काम करने के लिए जानी जाती हैं। उन्होंने राजस्थान में कन्याभ्रूण हत्या रोकने और राजस्थान के सीमान्त क्षेत्र में लड़कियों की खरीद फरोख्त रोकने के संबंध में कई आदेश जारी किये थे। यही नहीं पिछले दिनों इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीशों के आचरण पर सवाल उठाने वाले फैसले की पीठ में भी जस्टिस ज्ञान सुधा मिश्रा शामिल थीं।
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