भारत 21वीं सदी के साथ कदमताल कर रहा है, लेकिन झारखंड में अब भी हर साल डायन बताकर औसतन 62 महिलाओं को मौत के घाट उतार दिया जाता है। सूबे में बीते दो दशक में 1,240 महिलाएं मौत की नींद सुला दी गईं,और हजारों प्रताडि़त की गईं। प्रताड़ना का स्तर भी ऐसा-वैसा नहीं। कहीं कोई महिला निर्वस्त्र कर दी गई, तो कहीं किसी को सिर मुंडवा कर सात गांव घुमाया गया। कई का जीते जी श्राद्ध करा दिया गया, कई गांव से निकाल दी गईं, कई की इज्जत लूटी गई तो कुछ को जबरन मल-मूत्र पिलाया गया। 1991 से लेकर 2006 के बीच ही चाईबासा, जमशेदपुर और सरायकेला में डायन के नाम पर क्रमश: 117, 18 व 34 महिलाएं काल के गाल में भेज दी गईं। 2006 से 2010 के बीच के आधिकारिक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं लेकिन अनुमानत: इस बीच भी 50 के करीब महिलाओं को मार डाला गया। डायन प्रथा उन्मूलन की दिशा में काम कर रही गैर सरकारी संस्थाओं का कहना है कि राज्य में अंधविश्वास बहुत ज्यादा है। किसी के टोकने से कोई अनहोनी हो गई, कोई बच्चा बीमार पड़ा, गंभीर रोग की चपेट में आकर कोई असमय काल के गाल में समा गया तो पास-पड़ोस की कोई महिला डायन करार कर दी गई। संस्थाओं का आकलन है कि लोक-लाज, व्यक्तिगत मजबूरी, पारिवारिक दबाव अथवा अन्य कारणों से 70 फीसदी मामले सामने नहीं आ पाते हैं। गैर सरकारी संस्था आशा की अध्यक्ष पूनम टोप्पो के मुताबिक 1991 से मार्च 2006 के बीच चाईबासा में 117, लोहरदगा 127, गुमला 100, पलामू 60, हजारीबाग 36, सिमडेगा 35, सरायकेला 34, जमशेदपुर में 18,गढ़वा में 17, देवघर में 16, गिरिडीह और कोडरमा में 15-15, साहेबगंज में 14, बोकारो में 12, दुमका और गोड्डा में 11-11, चतरा में 10, धनबाद में 06, महिलाएं मार डाली गईं। संस्था के मुताबिक, मार्च 2006 से सितंबर 2007 तक 115 महिलाएं डायन करार देकर मार डाली गईं। इसी तरह 2008 में 43, 2009 में 31, जबकि 2010 में जून तक 19 महिलाएं मार डाली गईं।
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