Wednesday, January 19, 2011

मानसिक तनाव से महिलाओं का नाता

कुछ अस्पतालों में आए तनावों के मामलों का पिछले दिनों अध्ययन किया गया और विशेषज्ञों की राय के हवाले से खबर आई थी कि अब पुरुष भी तनाव के कारण थॉयराइड के शिकार हो रहे हैं। इसे चेतावनी की घंटी बताया गया है और भविष्य के खतरे से आगाह किया गया है। अखबारों में इससे बचने के उपाय के तौर पर पुरुषों के लिए योगासन आदि पर ध्यान देने की सलाह दी गई है। आधुनिक जीवनशैली लोगों के तनाव का कारण बताई जा रही है। फोर्टिस हॉस्पिटल के इंटरनल के मेडिसिन के विशेषज्ञ डॉ. जीसी भार्गव ने बताया है कि पहले पुरुषों में सिर्फ थॉयराइड हार्मोन नहीं बनने की बीमारी होती थी, लेकिन अब ऑटो इम्यून थॉयराइड की परेशानी बढ़ रही है, जो तनाव का कारण होता है। पहले यह बीमारी महिलाओं की बीमारी मानी जाती थी, लेकिन अब पुरुष भी इसके शिकार हो रहे हैं। अमेरिका में थॉयराइड के बीमार लोगों की संख्या डेढ़ करोड़ बताई गई है, जिसमें सें महिलाओं की संख्या एक करोड़ बीस लाख है। ध्यान देने लायक बात यह है कि महिलाएं पहले से ही इस तनावजनित बीमारी की शिकार रही हैं। यद्यपि अब उनकी संख्या भी बढ़ रही है, लेकिन जबसे पुरुष इसके शिकार होने लगे तो चिंता अधिक दिख रही है। आधुनिक जीवनशैली को बदलने की सलाह डॉक्टरों की तरफ से आ रही है। यानी पुरानी जीवनशैली महिलाओं का अहित ज्यादा करती थी। यह भी समझने की जरूरत है कि अक्सर पुरानी परंपराए और जीवनशैली की दुहाई कौन लोग अधिक देते हंै। शायद वे, जिन्हें इसमें अधिक फायदा था। आखिर क्यों तनाव पहले पुरुषों के पास कम था और महिलाओं के पास अधिक? और अब स्थिति बदल रही है। क्या पुरुषों में बढ़ते तनाव का एक सिरा अपने पैरों पर खड़ी होती स्त्री के चलते तो नहीं है, जो अब अपने फैसले लेने के लिए खुद सक्षम हो रही है। आत्मीय कहे जाने वाले मगर हिंसा पर टिके संबंधों से बाहर आने में हिचकिचाती नहीं है, जबकि इसके पहले की पीढ़ी के पास ऐसा विकल्प नहीं था। स्ति्रयों का बचपन से जिस तरह समाजीकरण किया जाता था कि पति ही परमेश्वर है तथा अपने पैरों पर खड़े होने की स्थिति रहती नहीं थी। लिहाजा, उन्हें ऐसे संबंधों को ढोना ही पड़ता था। यद्यपि अब विवाद तथा हिंसा के विरुद्ध औरत की आवाज पुलिस थाने और कचहरी परिसर में अधिक दिखती है। इसका अर्थ कतई यह नहीं निकलता कि अब तनाव अधिक है और पहले कम था, बल्कि आवाज उठाने का विकल्प और स्थान था ही नहीं। पिछले साल एक अध्ययन रिपोर्ट आई थी, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर की थी। व‌र्ल्ड इकोनॉमिक फोरम ने कुल 130 देशों में महिलाओं के खिलाफ होने वाले भेदभाव पर सर्वेक्षण कराया था, जिसमें भारत का स्थान 113वें पर था। यह अध्ययन नौकरी, शिक्षा, राजनीति तथा स्वास्थ्य में महिलाओं की स्थिति पर कराया गया था। राजनीतिक सशक्तिकरण में यहां की महिलाओं की स्थिति बेहतर पाई गई थी। इसके लिए कहा गया है कि हो सकता है इसका कारण पंचायतों में 33 फीसदी का आरक्षण रहा हो। इस रिपोर्ट के अनुसार नार्वे, फिनलैंड और स्वीडन में सबसे अधिक स्त्री-पुरुष समानता है और सबसे खराब स्थिति अरब देशों यमन और चाड की है। यह तुलना इस आधार पर की गई थी कि प्रत्येक देश अपने उपलब्ध संसाधनों का तथा अवसरों का बंटवारा अपने यहां के स्त्री-पुरुशों के बीच कैसे करते हैं। यों तो तनाव किसी के लिए भी अच्छा नहीं है। चाहे वह स्त्री हो या पुरुष और इससे बचने का रास्ता गंभीरता से तलाशा जाना चाहिए, लेकिन इन सर्वेक्षणों के बहाने हम अपने गैरबराबरीपूर्ण तानेबाने की तहकीकात एक बार पुन: कर सकते हैं। कुछ समय पहले एक और सर्वेक्षण आया था कि विवाहित महिलाएं अविवाहित महिलाओं की तुलना में अधिक सुरक्षित महसूस करती हंै। वेब पोर्टल भारत मेट्रिमोनी की तरफ से देश भर में कराए गए इस सर्वेक्षण में पांच हजार से अधिक महिलाओं को शामिल किया गया था। इसमें अधिकतर शादीशुदा महिलाओं ने कहा कि जीवन और कार्यस्थल पर वे अधिक सुरक्षित महसूस करती हैं। शादी एक तरह से उनके लिए सुरक्षा कवच का काम करती है। यह विचारणीय है कि हमारा समाज एकल या गैरशादीशुदा महिलाओं के बारे में क्या विचार रखता है। आखिर उन्हें यह भरोसा क्यों नहीं है कि वे सुरक्षित हैं? यानी यह सोच कि औरत किसी न किसी की होती है और अभी अगर कहीं बुक नहीं हुई तो वह उपलब्ध है? यदि किसी की घरवाली हो गई है तो उस पर डोरे डालना खतरे से खाली नहीं है, क्योंकि यह घरवाले के क्षेत्राधिकार का हनन है, जिसे वह बर्दाश्त नहीं कर सकता है। यदि कोई व्यवहार औरत की इच्छा या गरिमा के खिलाफ है, जो असुरक्षा का भाव पैदा करता है तो इसका शिकार अविवाहित ही अधिक महसूस करती है। पहले के समय में अक्सर विद्यार्थियों के बीच शादी के प्रतीक इस्तेमाल करने वाली लड़कियों को भाभी कहकर छींटाकशी की जाती थी और मित्रताभाव दूर रहता था। दोस्ती के रिश्ते के लिए भी कोरी लड़कियां चाहिए होती थीं। यदि सुरक्षित महसूस करना है तो शादी करना जरूरी है या किसी दूसरे कारण से भी तलाक या विधवा हो जाना अथवा अकेले रहना क्यों असुरक्षित करता है? यदि सुरक्षित सफर चाहिए तो मेट्रो के आरक्षित कोच में जाना होता है। बस में चौराहे पर तो असुरक्षा है ही। ट्रेनों में अकेले सफर करना खासतौर से रात का सफर हो तो असुरक्षित ही है। पैसे वाले पृष्ठभूमि की महिलाओं के लिए एसी कोच या हवाई जहाज की यात्रा अब धीरे-धीरे स्वाभाविक होने लगी है, लेकिन शेष सुरक्षा की गारंटी के अभाव में असुरक्षाभाव से ही की जाती है। ये सारे लक्षण किस प्रकार के समाज के हो सकते है! (लेखिका स्त्री अधिकार संगठन से जुड़ी हैं)

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