पत्नी के साथ मारपीट के आरोपी वरिष्ठ राजनयिक अधिकारी अनिल वर्मा को लंदन से वापस दिल्ली बुलाने का फैसला कर सरकार ने उन्हें फौरी तौर पर राहत तो दे दी है, लेकिन इस मामले ने एक बार फिर घरेलू हिंसा की हकीकत को उजागर किया है। ब्रिटेन ने भारत सरकार पर अनिल वर्मा को दी गई राजनयिक छूट वापस लेने का दबाव बनाया था, ताकि ब्रिटिश कानून के तहत उसके खिलाफ कार्रवाई की जा सके। लंदन का कहना था कि वह ब्रिटेन में पदस्थ राजनयिकों द्वारा कानून का उल्लंघन कतई बर्दाश्त नहीं करेगा।
मगर भारत सरकार ने ब्रिटेन के इस आग्रह को ठुकराकर अनिल वर्मा को दिल्ली बुला लिया। यहां उनके खिलाफ पत्नी के साथ मारपीट के आरोपों की जांच होगी। इस क्रम में उन्हें भी अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाएगा। अगर वह दोषी पाए गए, तो भारतीय नियम-कायदे के तहत उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। लेकिन सरकार ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि जांच की प्रक्रिया शुरू होने के बाद कब पूरी होगी। गौरतलब है कि अनिल वर्मा की पत्नी पारोमिता ने एक महीना पहले उन पर गरमागरम बहस के दौरान मारपीट का आरोप लगाया था। कथित तौर पर वह राजनयिक हमेशा कहता था कि कूटनयिक छूट मिलने के कारण कोई उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता।
इस प्रकरण ने महिलाओं के खिलाफ होने वाली घरेलू हिंसा को फिर से बहस के केंद्र में ला दिया है। कुछ साल पहले अपने ही देश में एक अनपढ़ पुरुष ने अपनी पत्नी को महज इसलिए जिंदा जला दिया था, क्योंकि उसने भोजन में नमक कम डाला था। अब एक आईएएस अधिकारी अनिल वर्मा द्वारा रेलवे में अधिकारी के पद पर काम करने वाली पत्नी की कथित तौर पर पिटाई का मामला सामने आया है। दरअसल हमारे देश में घरेलू हिंसा इतनी आम है कि चाहे महिला अनपढ़ हो या पढ़ी-लिखी, चाहे वह घर में रहती हो या बाहर काम करने जाती हो, इसका शिकार होती रहती है।
नारीवादी संगठन और सरकार, दोनों महिला सशक्तीकरण के लिए आर्थिक सशक्तीकरण को अनिवार्य मानते हैं। आज की भारतीय युवतियां महत्वाकांक्षी हैं और नौकरी को प्राथमिकता देने वाला एप्रोच उनमें साफ झलकता है। लेकिन समाज की मानसिकता आज भी दकियानूसी है। एक तरफ जहां युवतियों में पेशेवर जज्बा बढ़ रहा है, वहीं कामकाजी महिलाओं पर घरेलू हिंसा के मामले भी सामने आ रहे हैं। आरटीआई इंटरनेशनल वुमेन ग्लोबल हेल्थ इंपरेटिव और इंटरनेशनल सेंटर फॉर रिसर्च ऑन वुमेन द्वारा कराए गए शोध के मुताबिक, शादीशुदा कामकाजी महिलाओं को घरेलू हिंसा का ज्यादा खतरा झेलना पड़ता है। यह बात दीगर है कि घरेलू हिंसा का शिकार होने पर अधिकांश महिलाएं अपने आंसू और शरीर पर पड़े निशान छिपा लेती हैं। ये महिलाएं कई तरह की मजबूरियों के चलते पुलिस के पास शिकायत करने भी नहीं जातीं।
सनद रहे कि पिछली सरकार ने घरेलू हिंसा महिला संरक्षण विधेयक का जो मसौदा महिला संगठनों और अन्य संगठनों के पास उनकी राय जानने के लिए भेजा था, उसमें पुरुष द्वारा पत्नी को कभी-कभार एकाध थप्पड़ मारने वाली घटना को घरेलू हिंसा नहीं ठहराया गया था। नारीवादी संगठनों के विरोध दर्ज कराने के बाद इसे मसौदे से हटाया गया। यों तो 2006 में ही महिलाओं को घरेलू हिंसा से संरक्षण प्रदान करने के लिए ‘घरेलू हिंसा महिला संरक्षण कानून 2005’ लागू कर दिया गया, पर अधिकांश राज्य सरकारें इसके प्रति अब भी गंभीर नजर नहीं आतीं। पुलिस का नजरिया भी इस मुद्दे पर संवेदनशील नहीं रहता, जिससे पीड़िता की मुश्किलें और ज्यादा बढ़ जाती हैं। जाहिर है कि राज्य का चरित्र ही पुरुष प्रधान है। 26 अक्तूबर, 2006 को जब यह कानून लागू किया गया, तो यूपीए सरकार में तत्कालीन महिला एवं बाल विकास मंत्री रेणुका चौधरी ने अगले दिन टिप्पणी की थी कि उन्हें किसी भी पुरुष ने इस कानून के लागू होने पर बधाई तक नहीं दी है। जाहिर है, उनका संदेश साफ था।
बताते हैं कि लंदन स्थित भारतीय उच्चायोग को अनिल वर्मा के पत्नी के साथ मारपीट करने के मामले की जानकारी पहले से थी, लेकिन उन्होंने इसे दबाने की कोशिश की थी। ऐसे में यह देखने वाली बात होगी कि इस मामले की जांच कितनी निष्पक्ष और पारदर्शी होगी.
No comments:
Post a Comment