यह अत्यंत सुखद है कि पंजाब में कन्या-बालक लिंग अनुपात काफी तेजी से सुधर रहा है। इसके लिए इस दिशा में प्रयासरत सभी सरकारी और गैर सरकारी संस्थान साधुवाद के पात्र हैं, किंतु यह भी एक सच्चाई है कि काम अभी पूरा नहीं हुआ है तथा लोगों में और अधिक चेतना पैदा करने की आवश्यकता है। इसमें संदेह नहीं कि अब पंजाब में लड़कियों को उस प्रकार से बोझ नहीं समझा जाता है जैसा कि पहले समझा जाता था किंतु सामाजिक कुरीतियों से मुक्ति मिलने में काफी समय लगता है। कन्याओं की घटती जन्म दर के खतरों से लोगों को सचेत करने के लिए प्रदेश में सभी ओर से प्रयास किए जा रहे थे। नन्हीं छांव जैसी अनेक स्वयंसेवी संस्थाएं तो इस काम में लगी ही हैं, सरकारी स्तर पर भी स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी सुधार के अनेक कदम उठाए हैं, किंतु मामला सामाजिक समझ से जुड़ा होने के कारण इनमें अपेक्षित सफलता नहीं मिल पा रही है। ऐसी स्थिति में कुछ सरकारी अधिकारियों द्वारा उठाए जा रहे कदम की भी अनदेखी नहीं की जा सकती है। कुछ वर्षो पूर्व नवांशहर के उपायुक्त ने अपने स्तर पर कुछ पहल की थी जिसे न केवल काफी सराहा गया बल्कि पड़ोसी प्रदेश हिमाचल प्रदेश ने उसके कुछ अंशों को नवांशहर माडल के रूप में अंगीकार भी किया। इसी प्रकार की एक पहल तरनतारन जिले में तैनात एक एसडीएम ने भी की और अपने स्तर पर कुछ लड़कियों को एक गांव के ऐसे 32 घरों में लोहड़ी की बधाई देने के लिए भेजा जहां इस वर्ष लड़कियों का जन्म हुआ है। पंजाब में लोहड़ी का पर्व उन्हीं घरों में धूम-धाम से मनाया जाता है जहां पुत्रों का जन्म होता है अथवा विवाह होता है। इसी गांव में गत वर्ष 22 लड़कियों ने जन्म लिया था। यह एक प्रकार से अन्य गांवों के लिए प्रेरणास्पद कदम है। यह कदम इसलिए सराहनीय है क्योंकि किसी सरकारी अधिकारी ने अपनी ड्यूटी के अतिरिक्त अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझते हुए इस दिशा में विचार किया और कोई पहल की। आशा की जानी चाहिए कि अन्य अधिकारी भी अपने-अपने क्षेत्र में इसी प्रकार कुरीतियां समाप्त करने के लिए कुछ अभिनव प्रयोग करेंगे।
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