Friday, June 22, 2012

हम भारत की नारी हैं


यूरोजोन संकट के साये में दुनिया के महत्वपूर्ण औद्योगिक देशों के समूह जी-20 की सातवीं बैठक बुधवार को खत्म हो गई और इस बैठक में शिरकत करने गए अपने देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का मानना है कि सतत विकास के लिए जी-20 देशों को मिलकर काम करने की जरूरत है ताकि विकासोन्मुख नीतियों को लागू किया जा सके। सतत विकास के लिए मजूबत अर्थव्यवस्था के अलावा उस देश के हालात ऐसे होने चाहिए, जहां उसकी आधी आबादी यानी महिलाएं खुद को सुरक्षित महसूस करें और लैंगिक समानता को प्रोत्साहित करने वाले कारगर उपाय जमीनी स्तर पर अपनाए जाएं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को संभवत: इस तथ्य की जानकारी नहीं होगी कि हमारा देश जी-20 समूह के सदस्य देशों में महिला अधिकारों के मामले में एकदम फिसड्डी है। जी-20 अर्थव्यवस्था में भारत महिलाओं के लिए जीने लायक सबसे खराब देश है। थॉमसन रायटर फाउंडेशन ने अपने इस अध्ययन को मैक्सिको के लास काबोस में जी-20 की सातवीं बैठक शुरू होने से पांच दिन पहले जारी कर यह संदेश दिया कि महिला अधिकारों के बावत बयानबाजी या महज कानून बनाने से महिला सशक्तीकरण का एजेंडा पूरा नहीं हो जाता। जी-20 समूह अर्थव्यवस्था के आकार और आबादी के हिसाब से दुनिया का सबसे महत्वपूर्ण संगठन है। आइएमएफ के अनुसार दुनिया की करीब 66 प्रतिशत आबादी इन देशों में रहती है और 80 प्रतिशत विश्व व्यापार पर इनका कब्जा है। 80 प्रतिशत हिस्सेदारी ग्रास व‌र्ल्ड प्रोडक्ट्स में भी है। इस दमदार संगठन में भारत की भूमिका अहम है, लेकिन सवाल यह भी है कि भारत औरतों के लिहाज से सबसे खराब देश क्यों है? थॉमसन रॉयटर फाउंडेशन ने जी-20 के सदस्य देशों में महिलाओं की स्थिति जानने के लिए इस समूह के देशों के 370 विशेषज्ञों की मदद ली। इन विशेषज्ञों की राय में लैंगिक समानता को प्रोत्साहित करने, शोषण और हिंसा से बचाने के लिए उपायों को अपनाने और महिलाओं के स्वास्थ्य पर ध्यान दिए जाने के कारण कनाडा की महिलाएं सबसे बेहतर स्थिति में हैं। कनाडा को इस सूची में पहले स्थान पर रखा गया है, जबकि कन्या भ्रूण हत्या, कम उम्र में शादी और पराधीनता की वजह से भारत में महिलाओं की स्थिति बहुत दयनीय है। भारत को इस सूची में सबसे नीचे 19वें स्थान पर रखा गया है। सेव द चिल्ड्रेन, यूके संस्था के हेल्थ प्रोग्राम डेवलपमेंट एडवाइजर गुलशन रहमान की भारत की लड़कियों और महिलाओं की स्थिति के संबंध में टिप्पणी को नजरअंदाज करना मुश्किल दिखता है। उनके मुताबिक भारत में लड़कियों और महिलाओं की वस्तु के रूप में बिक्री जारी है। कम उम्र में शादी, दहेज संबंधी झगड़ों के चलते जिंदा जलाने और युवतियों से खराब बर्ताव की बातें चिंताजनक हैं। यह हालात तब है जबकि यहां घरेलू हिंसा को देखते हुए महिला संरक्षण कानून-2005 लागू है। इस सर्वे में महिलाओं की स्थिति का आकलन करने वाले चार महत्वपूर्ण बिंदु स्वास्थ्य की गुणवत्ता, हिंसा से मुक्ति, संसाधनों तक पहुंच, तस्करी-दासता से मुक्तिको भी शामिल किया गया है। अध्ययन से पता चलता है कि भारत इस सूची में सबसे नीचे 19वें स्थान पर है। द लांसेट 2011 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में पिछले तीन दशकों में 1.2 करोड़ कन्या भ्रूणों की हत्या हुई है। यह गैर कानूनी है, लेकिन कानून का डर कहीं नजर नहीं आता। जम्मू-कश्मीर में भी खतरे की घंटी बज चुकी है और देश की राजधानी दिल्ली में भी आंकड़े यही संकेत दे रहे हैं कि सरकार और समाज को मिलकर ठोस कदम उठाने की जरूरत है। महिलाओं के प्रति अन्य अपराध भी चिंता का विषय हैं, क्योंकि इनके तार समाज में महिलाओं की कमजोर स्थिति से जुड़ते हैं। राष्ट्रीय अपराध संाख्यिकी ब्यूरो-2010 के मुताबिक प्रति एक घ्ंाटे में दहेज के कारण एक दुल्हन की मौत हो जाती है। ये सरकारी आंकड़े हैं और असली तस्वीर निश्चित ही इससे अधिक भयावह होगी। मगर इस भयावह तस्वीर के बावजूद अपने देश में समाज का एक वर्ग ऐसा भी है जिसने दहेज विरोधी कानून के खिलाफ मुहिम छेड़ रखी है। महिलाओं के प्रति अन्य अपराध भी देश में महिलाओं की स्थिति पर सवालिया निशान लगाती हैं। महिलाओं को लेकर कुछ खबरें इस रिपोर्ट के जारी होने से कुछ दिन पहले अखबारों में छपी थीं। एक पति ने अपनी पत्नी को कुएं में इसलिए फेंक दिया, क्योंकि उसे शक था कि उस औरत के किसी दूसरे मर्द के साथ शारीरिक संबंध थे। औरत जब कुएं में मर गई तो वह उसके लापता होने की रपट दर्ज कराने थाने पहुंच गया। एक दूसरे मामले में पति ने पत्नी की अवैध रिश्तों के शक में तवे से पीट-पीटकर जान ले ली। एक शादीशुदा महिला ने जब नेत्रहीन बच्चे को जन्म दिया तो ससुराल वालों ने बच्चे सहित महिला को घर से निकाल दिया। 2009 में भारत के गृह सचिव रहे मुधकर गुप्ता का आकलन है कि करीब दस लाख लोगों की तस्करी की गई जिसमें अधिकांश महिलाएं थीं। सीबीआइ की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि 90 प्रतिशत मानव तस्करी देश की सीमाओं में ही हुई। सीबीआइ रिपोर्ट के मुताबिक, अब भी देश में तीस लाख से ज्यादा यौनकर्मी मौजूह हैं, जो एक बड़ा सवाल है। महिलाओं की यह तस्करी यौन शोषण के उद्देश्य के अलावा जबरन सस्ती मजदूरी कराए जाने के मकसद से भी होती है। राजनीति के लिहाज से भारत 17वें नंबर पर है। चीन और सऊदी अरब हमसे आगे हैं। यह स्थिति तब है, जब कि देश की राष्ट्रपति महिला है। लोकसभा अध्यक्ष और लोकसभा में प्रतिपक्ष की नेता महिला हैं। केंद्र में सत्तारूढ़ गठबंधन दल यानी संप्रग की अध्यक्ष भी एक महिला हैं, जो टाइम पत्रिका में दुनिया की ताकतवर महिलाओं की सूची में कई सालों से अपना स्थान बनाए हुए हैं। यही नहीं, संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी देश की सबसे पुरानी और बड़ी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस की बीते 14 सालों से अध्यक्ष भी हैं। शीर्ष राजनीति में महिलाओं को देखते हुए जी-20 में भारतीय महिलाओं की सबसे खराब स्थिति हम सभी के लिए शर्म की बात है। हमें नहीं भूलना चाहिए कि इससे समाज और देश का विकास प्रभावित होता है। (लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)