Tuesday, September 27, 2011

कहीं नहीं सुरक्षित


समाज में बढ़ते अपराधों की चर्चा के क्रम में महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों की फेहरिस्त बहुत लंबी मानी जाएगी। और इनमें सबसे जघन्य माना जाने वाला बलात्कार और यौन हिंसा का अपराध तो ऐसा नासूर है जिसका उपचार मौजूदा सामाजिक, राजनीतिक और कानूनी ढांचे में खोजना फिलहाल संभव नहीं दिखता। हालांकि इस अपराध पर नियंतण्रपाने की हरसंभव कोशिशों की बात पंचायत स्तर से लेकर देश की संसद तक में लगातार की जाती रही है, इसके लिए कड़े कानूनों का भी प्रावधान है और शासन-प्रशासन भी इस अपराध को काबू में करने के दावे जब-तब करता रहता है लेकिन समय- समय पर जारी होने वाले सव्रे सारी पोल खोल देते हैं। सेंटर फॉर सोशल रिसर्च (सीएसआर) द्वारा कराये गये ऐसे ही एक सव्रे के मुताबिक देश की राजधानी दिल्ली में यौन हिंसा के मामले में महिलाएं दिन में भी सुरक्षित नहीं हैं। वे दिन-दहाड़े और घर-बाहर कहीं भी बलात्कार की शिकार हो सकती हैं। जुलाई 2009 से 2011 के बीच दिल्ली के बारे में जारी इस सव्रे के अनुसार बलात्कार पीड़िताओं द्वारा दर्ज पुलिस रिपोर्ट और चिकित्सकों की रिपोर्ट बताती हैं कि राजधानी में यह जघन्य अपराध रात के अंधेरे में ही नहीं बल्कि दिन की उजाले में भी बेखौफ अंजाम दिया जाता रहा है। उक्त रिपोर्ट महिलाओं के प्रति यौन अपराध या अत्याचार के मामले में एक नहीं अनेक कोणों से खुलासा करती नजर आती है जिसमें हमारे सामाजिक ताने-बाने के विद्रूप हो जाने की तस्वीर साफ-साफ उजागर होती दिखती है। यह स्थिति हमारे सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश के लिए ऐसा अभिशाप साबित हो रही है, जहां मनुष्य और पशु के बीच कोई भेद नहीं रह जाता। किसी अनजान वहशी द्वारा राह चलती युवती को हवस का शिकार बनाना बेशक नई खबर न हो लेकिन सामाजिक विद्रूपता का एक भयावह सच यह सामने आ रहा है कि अधिकतर मामलों में बलात्कार पीड़िता अपने किसी नजदीकी सगे-संबंधी, पास- पड़ोसी या जान-पहचान वाले द्वारा छली जाती रही है। यह स्थिति समाज में अपनों पर अविास और भावनाओं के क्षरण के वातावरण की ऐसी निर्मिति कर रही है, जहां न कोई पिता है, न भाई, न पति और न ही मित्र। जहां केवल एक नारी देह है जो कहीं भी किसी भी समय किसी लोलुप कामी की हवस का शिकार होने को अभिशप्त है। अध्ययन इस आशय से भी महत्वपूर्ण है कि यह देश की राजधानी को आधार मानकर किया गया है जो पूरे देश की स्थिति समझने के लिए पर्याप्त है। इसलिए कि राजधानी होने के कारण पुलिस सुरक्षा या अन्य सुविधाओं के मामले में दिल्ली देश के बाकी हिस्सों से ज्यादा सम्पन्न मानी जाती है। और जब राजधानी में ही दिन-दहाड़े बलात्कार की घटनाएं घट रही हों तो दूर-दराज के शहर या गांव- कस्बों की महिलाएं कितनी सुरक्षित होंगी, यह बखूबी समझा जा सकता है। एक बात और कि बलात्कार के खिलाफ पर्याप्त जागरूकता के बावजूद हमारा समाज अब भी खुलकर बोलने में हिचकता है। दिल्ली जैसे महानगर तक में जब करीब आधे ही वारदात के तुरंत बाद पुलिस के सामने आते हैं और कुछेक एक या दो दिन बाद और कुछ उसके भी कई दिनों बाद तो न जाने कितने तो दबे ही रह जाते होंगे जो बलात्कारियों का हौसला बढ़ाने का काम करते होंगे।


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