Tuesday, December 28, 2010

विवाह, विवाद और संपत्ति

यह सदी महिलाओं के लिए काफी अहम रही। कई नए कानून बने तो कई कानूनों में परिर्वतन किया गया, जिससे महिलाएं काफी सशक्त हुईं। घरेलू हिंसा से लेकर ऑफिस की कामकाजी महिलाओं को लेकर इसी दशक में कानून बना। बेटियों को बेटों के समान पैतृक संपत्ति का अधिकार दिया गया। 2005 में हिन्दू उत्तराधिकार कानूनमें बदलाव किया गया। अभी तक बेटियों को संपत्ति में अधिकार नहीं था। यह सबसे बड़ा बदलाव है। कानून बन गया तो लोगों को दिमाग में यह बात आ गई कि बेटा-बेटी, दोनों समान हैं। 2007 में चाइल्ड मैरिज एक्ट में जो प्रिवेंशनथा, वह प्रोहिविशनबन गया। अभी तक चाइल्ड मैरिज होने देने को लेकर कानून बना था, जबकि अब उसे रोकने के लिए कानून बन गया। बाल विवाह कराने वालों को दो साल की सजा और एक लाख रुपए का जुर्माना तय किया गया है। पति-पत्नी में जो भी नाबालिग है, कोई भी शादी के खिलाफ कोर्ट में आवेदन कर सकता है। यदि पत्नी नाबालिग है और पति बालिग है, उन्हें बच्चा हो जाता है तो दोनों का पालन- पोषण पति करेगा। यदि दोनों नाबालिग है तो पति के मां-बाप उनके मैंटेनेंस का र्खच वहन करेंगे। इस कानून को गैर-जमानती बनाया गया है। इसके जरिए लड़कियों को बहुत फायदा होगा, क्योंकि वे ऐसे मामलों से ज्यादा परेशानहाल थीं। 2005 में डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट आया। हालांकि यह अक्टूबर, 2006 से लागू हुआ। इसके तहत महिलाओं को, चाहे वे मानसिक हो या शारीरिक, किसी भी तरह के उत्पीड़न के लिए घर के लोगों को दोषी माना जाएगा। इस कानून का दायरा और भी व्यापक किया गया। फाइनेंशियल, सेक्सुअल या फिर इमोशनल प्रताड़ना देने पर भी सजा का प्रावधान किया गया है। इसके दायरे में घर में रह रही छोटी बच्चियों से लेकर बुजुर्ग सदस्य तक को भी शामिल किया गया है जिन्हें दोषी ठहराया जाएगा। साथ ही, लिविंग रिलेशनशिप वाली महिलाओं को भी र्पयाप्त अधिकार दिए गए हैं। इन महिलाओं को भी इस कानून में शामिल किया गया है और उन्हें भी इसका लाभ मिलेगा। साथ ही, पीड़िता को पुलिस के पास जाने की जरूरत नहीं है। कानून के तहत दो अधिकारियों, ‘प्रोटेक्शन अफसरऔर र्सविस प्रोवाइडरकी नियुक्ति की गई है। यदि महिलाओं को घर में मारा-पीटा जाता है तो उनके पुर्नवास या रहने या सुरक्षा की जिम्मेदारी प्रोटेक्शन अफसर की होगी। इस पर होने वाले र्खच को पति या फिर संबंधित दूसरे लोगों से वसूला जाएगा। यदि प्रताड़िता कोर्ट जाने में अक्षम है तो र्सविस प्रोवाइडर उसके बदले कोर्ट में पेश होगा और सारी कार्यवाही में उसके बदले प्रस्तुत होगा। प्रताड़िता के मैंटेनेंस, शिक्षा, टेलीफोन आदि की सुविधा, यदि नहीं दी जाती है तो उसके उपाय भी इस कानून के जरिए किए गए हैं। घरेलू उत्पीड़न से जुड़े किसी भी मामले की सुनवाई 60 दिनों के भीतर किए जाने को भी सुनिश्चित किया गया। 2001 में मुआवजे को लेकर भी महिलाओं का सशक्त किया गया। तलाक के बाद पत्नी को गुजारा-भत्ता के तौर पर दिए जाने वाले रकम को लेकर कानून में साफ-साफ कुछ भी नहीं लिखा था। केस चलता था लेकिन महिला या पुरुष को कोई भत्ता नहीं मिलता था। अंतरिम मैंटेनेंस पाने की अवधि नहीं होती थी, लेकिन अब केस के दौरान यदि महिलाओं को पैसे की जरूरत होगी तो पुरुष को देना होगा, खासकर डोमेस्टिक वायलेंस मामले में। हां, इसके तहत भी 60 दिनों के भीतर फैसले आने को सुनिश्चित किया गया। 24 सितम्बर, 2001 में सीआरपीसी यानी आपराधिक प्रक्रिया संहिता में भी बदलाव किए गए। धारा-125 के तहत चाहें तो मां-बाप अपने बच्चे से या बच्चे अपने मां-बाप से मैंटेनेंस मांग सकते हैं। पत्नी भी अपने पति से और पति भी अपनी पत्नी से मैंटेनेंस के लिए पैसे मांग सकता है। भारत में चूंकि, ज्यादातर महिलाएं नहीं कमाती हैं या पति पर आश्रित रहती हैं, इसलिए यह काफी अहम है। अभी तक इस कानून के तहत पर व्यक्ति के हिसाब से 500 रुपए निश्चित किया गया था। यानी माता-पिता दोनों को मैंटेनेंस देनी हो तो 1000 रुपए में काम चल जाता था। लेकिन, अब यह अनलिमिटेड हो गया है और बच्चों के रहने-खाने के स्टैंर्डड पर यह रकम तय होगी। सेक्सुअल हैरसमेंट एट र्वकिग-प्लेस इसी दौर में संसद में पेश हुआ था। विशाखा मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला सुनाया, वह अहम है। कम से कम अब महिलाएं अच्छे माहौल में दफ्तरों में कामकाज कर सकेंगी। शादी की न्यूनतम उम्र बढ़ाना भी इस दशक में अहम रहा। साथ ही, पत्नी के साथ जबरदस्ती करने को रेप की श्रेणी में शामिल किया जाना, महिलाओं के सशक्तिकरण की नई तस्वीर पेश करता है। और भी, कई छिटपुट कानून आए और बदलाव हुए हैं जिससे महिलाएं काफी सशक्त हुई हैं। सही मायने में देखें तो आज पुरुषों की तुलना में महिलाएं काफी ताकतवर हुई हैं बशत्रे, वे उसका प्रयोग सोच-समझकर करें। अब अन्याय का विरोध वह कर सकती हैं। जरूरी नहीं कि कानून आने पर झगड़े किए ही जाएं। इसके अलावा राइट टू एजुकेशन, राइट टू इनफॉम्रेशन से भी महिलाओं को काफी फायदा हुआ है।

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