Wednesday, June 1, 2011

कैसे ढूंढेंगे 136 महिला पार्षद!


पार्टी संगठन में महिलाओं को बहुत ज्यादा तवज्जो न देने का खामियाजा राजनीति दलों को भुगतना पड़ सकता है। दलों के सामने यक्ष प्रश्न होगा कि पुनर्गठित एमसीडी में कहां से 50 फीसदी वैसे उम्मीदवार को लाए जो महिला हो और राजनीति में दल विशेष में अच्छा खासा अनुभव हो। दिल्ली सरकार ने दिल्ली में तीन नगर निगम बनाने का फैसला तो ले लिया साथ ही उसमें महिलाओं की सीटों का आरक्षण 50 प्रतिशत कर दिया है। इस हिसाब से नगर निगम में महिलाएं पुरुषों पर भारी पड़ने वाली हैं। वर्ष 2007 में एमसीडी चुनाव में वार्डो की संख्या 272 हुई थी तो वहां पहले से 33 फीसदी आरक्षण होने से 91 महिला प्रत्याशी ढ़ूढने में ही राजनीतिक दलों के पसीने निकल गए। इस कारण कई पति पार्षदों (जिनके पति टिकट के कतार में थे लेकिन सीटें आरक्षित हो जाने से उन्हें टिकट नहीं मिल सका) को मैदान में उतारा गया। अब दिल्ली सरकार ने वहां महिलाओं का आरक्षण 50 प्रतिशत कर दिया है, इस लिहाज से वहां अब 136 महिला पार्षद चुनी जाएंगी, यानी कई पुरुष नेताओं या पार्षदों की टिकटें हर हाल में कटेंगी। सूत्र बताते हैं कि एमसीडी में अभी जितनी भी महिला पार्षद हैं, उनमें से करीब 75 प्रतिशत महिलाएं पार्टी के किसी पुरुष नेता की पत्नी या रिश्तेदार हैं। इनमें से कुछ ही महिलाएं ऐसी हैं, जो स्वतंत्र रूप से राजनीति कर रही हैं। वर्तमान नगर निगम में देखें तो कई महिलाओं को इसलिए टिकट मिल गया कि अंतिम समय में कई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हो गई, जिसके चलते इलाके के भारी भरकम नेता की महिला रिश्तेदार को टिकट थमा दी गई। प्रस्तावित एमसीडी में महिलाओं के लिए 50 फीसदी आरक्षित संबंधी सरकार के इस निर्णय से पुरुष नेताओं की चिंताएं अभी से बढ़ गई हैं। इन सबके बावजूद दिल्ली के नेता खासे बेचैन हैं। इस मामले में जब जागरण ने कुछ पार्षदों से बात की तो उनका मानना है कि महिलाओं का आरक्षण बढ़ने से उनकी नेतागिरी खतरे में पड़ सकती है। उन्होंने साफ कहा कि आरक्षण के कारण अगर उन्हें टिकट नहीं मिलता है तो वे अपने परिवार की महिलाओं को चुनाव लड़ाने से परहेज नहीं करेंगे। उनका कहना है कि वे सालों से पार्टी में जान इसीलिए तो लड़ा रहे हैं कि जनप्रतिनिधि बनें, लेकिन अगर ऐसा नहीं होता तो उनके घर की महिलाओं को चुनाव लड़ाने में बुराई क्या है।


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