Wednesday, June 1, 2011

आइएमएफ की मुखिया महिला क्यों नहीं


अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) का अगला अध्यक्ष कौन होगा? हमेशा की तरह कोई यूरोपीय इस पद को संभालेगा या यूरोप से बाहर के किसी व्यक्ति को इस अहम पद का ताज सौंपकर नया इतिहास रचा जाएगा। इस सवाल पर विकसित और विकासशील देशों के बीच बहस शुरू हो चुकी है। इस बहस में एक तरफ जी-20 के देश भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील और रूस हैं तो दूसरी तरफ अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस, इटली। दरअसल, आइएमएफ प्रमुख पद संबंधी बहस में एक और पहलू भी जुड़ गया है। बहस ने यह रुख भी अख्तियार कर लिया है कि क्यों न इस बार किसी महिला को यह प्रमुख पद सौंपकर 55 साल पुरानी रवायत को तोड़ते हुए एक आदर्श मिसाल कायम की जाए। बता दें कि आइएमएफ के अब तक इतिहास में कभी भी शीर्ष पद पर किसी महिला की ताजपोशी नहीं हो पाई है। आइएमएफ के प्रमुख पद को लेकर हाल में बहस तब शुरू हुई, जब कुछ दिन पहले इस संगठन के पूर्व प्रमुख डोमेनिक स्ट्रॉस कॉन को दुराचार के आरोपों के कारण अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था। स्ट्रॉस कॉन पर अमेरिका के मैनहट्टन में एक होटल की एक महिला कर्मचारी के साथ दुष्कर्म के प्रयास का आरोप लगाया गया है। अब वह जमानत पर रिहा हैं, लेकिन उन्हें आइएमएफ प्रमुख के पद से इस्तीफा देना पड़ा। बहरहाल, उनके इस्तीफा देने के बाद से आइएमएफ की महिला कर्मचारियों ने इस पद पर किसी महिला को चुने जाने की पैरवी शुरू कर दी है। ई-मेल के जरिए मुहिम हाल में न्यूयार्क टाइम्स ने अपने एक लेख में खुलासा किया था कि किस प्रकार आइएमएफ में कार्यरत महिलाएं इस विश्वस्तरीय वित्तीय संस्थान में पुरुषों के वर्चस्व को लेकर परेशान हैं। यौन उत्पीड़न की शिकायतों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता। पुरुषों की तुलना में बहुत कम महिलाएं शीर्ष पदों पर हैं। अलबत्ता, महिलाओं ने स्ट्रॉस कॉन की इस घटना के बाद सोचा कि महिला प्रमुख पद की मांग को उठाने के लिए यह उचित मौका है। अगर कोई महिला इस संस्थान की मुखिया बन कर आती है तो संभवत: कार्यस्थल पर माहौल ज्यादा वुमन फ्रेंडली बन जाए। संस्थान के वैश्विक स्तर पर महिला हितों के प्रतिकूल नजरिए और नीतियों में बदलाव का रास्ता खुले। लिहाजा ई-मेल के जरिए विचारों का आदान-प्रदान शुरू हुआ। अमेरिकी समाचार एजेंसी सीएनएन ने दावा किया है कि उसके पास इन ई-मेल का ब्यौरा है। एक महिला अधिकारी का कहना है कि आइएमएफ जैसे महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय संस्थान की नकारात्मक छवि को तोड़ने के लिए बेहतर होगा कि एक महिला को इसका प्रमुख बना दिया जाए। वैसे भी महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले बेहतर मैनेजर माना जाता है। एक अन्य महिला लिखती हैं कि क्या हमें आइएमएफ में ग्लास सिलिंग नहीं होने का ढोंग जारी रखना चाहिए? ऐसी आवाजों के पीछे वॉशिंगटन स्थित आइएमएफ की दो बड़ी-बड़ी इमारतों की कार्यशैली और महिलाओं की कम संख्या भी वजह है। आइएमएफ में महिलाओं की भागीदारी दूसरे विश्वयुद्ध के बाद आर्थिक संकट से बचने और वैश्विक अर्थव्यवस्था के सार्थक विकास के लिए 1945 में आइएमएफ का गठन किया गया था। आज इस सस्ंथान में 2,421 लोगों का स्टाफ है। इसके 30 सीनियर एक्यूजिटव में सिर्फ छह महिलाएं हैं। मैनेजर स्तर पर महिलाओं की भागीदारी 21.5 प्रतिशत है। आइएमएफ में शीर्ष पदों पर पेशेवर महिलाओं की कम संख्या से जुड़ी इस ताजा बहस ने अन्य संस्थानों का जायजा लेने का भी माहौल बना दिया है। दुनिया के कई देशों में कंपनियों के बोर्ड रूम में बहुत कम महिला निदेशक नजर आती हैं। महिलाएं और वैश्विक नजरिया उद्योग चैंबर एसोचैम के अध्ययन कारपोरेट वुमन क्लोज द जेंडर गैप एंड ड्रीम बिग के अनुसार, कनाडा और अमेरिका में ऐसे महत्वपूर्ण पदों पर 15 व 14.5 प्रतिशत महिलाएं हैं। ब्रिटेन में यह संख्या करीब 12.5 प्रतिशत है। नार्वे में 39 तो स्वीडन में 25 प्रतिशत है। फिनलैंड में 23 प्रतिशत है। हांगकांग और ऑस्ट्रेलिया में यह संख्या क्रमवार 8.9 और 8.3 है। दुनिया के 39 देशों में हुए एक सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक थाईलैंड में महिला सीईओ की संख्या सबसे ज्यादा है। इस देश में विभिन्न कंपनियों में सीईओ के रूप में 30 प्रतिशत महिलाएं काम कर रही हैं। चीन केवल 19 प्रतिशत महिला सीईओ के साथ दुनिया में दूसरे नंबर पर है। यूरोपीय देशों में यह प्रतिशत नौ और उत्तरी अमेरिका में केवल पांच प्रतिशत ही है। जहां तक अपने देश भारत का सवाल है तो बीएसई की चोटी की 100 कंपनियों के बोर्ड में महिलाओं की संख्या महज 5.3 प्रतिशत है। बीएसई की इन सूचीबद्ध कंपनियों में 1,112 निदेशक हैं, जिनमें 59 महिलाएं हैं यानी 5.3 प्रतिशत। दरअसल, ऐसे अध्ययनों और सर्वेक्षणों का मकसद कारपोरेट क्षेत्र में ऊंचे पदों पर महिलाओं की कम संख्या वाले मुद्दे को उठाना और बदलाव के लिए बहस का माहौल बनाना है। विभिन्न देशों ने महिलाओं को बोर्ड रूम में शमिल करने के लिए अलग-अलग नीतियां अपनाई हैं, क्योंकि अनुभव बताता है कि विशेष प्रयास किए बिना स्थिति सुधरने वाली नहीं। नार्वे और स्पेन की सरकार ने महिला निदेशकों की अनिवार्य भर्ती संबंधी कानून बनाया और इसके सकारात्मक नतीजे सामने आए। आज नार्वे में महिला निदेशकों की संख्या 39 प्रतिशत है और इसी तरह स्पेन में भी महिलाओं की स्थिति सुधरी है। अमेरिका में 15 प्रतिशत महिलाएं हैं और बोर्ड रूम में महिलाओं की यह संख्या बीते कई सालों से सरकी नहीं है। वहां कोई कानूनी पहल के बगैर बोर्ड रूम में कब्जा करने वाली पुरुष मानसिकता को बदलने पर है। ब्रिटेन में भी कानून नहीं है और यह आंकड़ा 12.5 पर ही अटका हुआ है। वहां सरकार ने हाल में कारपोरेट सेक्टर में महिलाओं की कम तादाद पर एक जांच कराई और इस जांच के नतीजों ने कंपनियों को अपने-अपने यहां महिला कार्यकारी अधिकारियों की अनिवार्य नियुक्ति संबंधी कोटा निश्चित करने के लिए मजबूर किया। इस सरकारी जांच के मुखिया लार्ड डेविस का मानना है कि देशभर की कंपनियों में उच्च पदों पर प्रतिभाशाली और योग्य महिलाओं को मौका मिले, यह सुनिश्चित करने के लिए मूलभूत बदलाव लाने की जरूरत थी। दरअसल, आइएमएफ का महिला स्टाफ अब महिला प्रमुख पद की जो मांग कर रहा है, उसे दुनिया में महिला निदेशकों की ताजा संख्या से अलग करके नहीं देखा जा सकता। उनका सरोकार भी कमोबेस ऐसा कदम उठाकर एक संदेश देना है कि महिलाएं भी इस पद के योग्य हैं, हकदार हैं और उन्हें यह पद मिलना चाहिए। बेशक आइएमएफ के प्रमुख पद के लिए फ्रांस की वित्तमंत्री क्रिस्टीन लेगार्ड उम्मीदवार हैं और आइएमएफ के बोर्ड में शमिल तमाम यूरोपीय सदस्य मुल्कों की हिमायत उन्हें हासिल है, लेकिन उनकी इस मजबूत दावेदारी के साथ यह विवाद भी जुड़ गया है कि गैर-यूरोपीय प्रमुख की दावेदारी की काट के लिए यूरोपीय देशों ने अपना कब्जा बनाए रखने की खातिर कहीं महिला प्रमुख पद वाले ई-मेलों के पीछे प्रयोजक की भूमिका तो नहीं निभाई? (लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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