Wednesday, May 25, 2011

देश के धनी भी नहीं चाहते घर की लक्ष्मी


एक नए अध्ययन में यह बात सामने आई है कि संतान के रूप में एक कन्या होने के बाद यदि गर्भ में दूसरी भी लड़की आ जाती है तो ऐसे भ्रूण की हत्या करवाने की प्रवृत्ति भारत में धनी एवं शिक्षित तबकों में तेजी से बढ़ रही है। प्रतिष्ठित लैंसेट पत्रिका के आगामी अंक में छपने वाले इस अध्ययन के निष्कर्षो के अनुसार 1980 से 2010 के बीच इस तरह के गर्भपातों की संख्या 42 लाख से एक करोड़ 21 लाख के बीच रही है। अध्ययन में दावा किया गया है कि पिछले कुछ दशकों में पुत्र की चाहत में चुनिंदा गर्भपात का चलन बढ़ा है। साथ ही लड़के-लड़कियों के अनुपात में कमी की प्रवृत्ति जो अभी तक उत्तरी राज्यों में ही ज्यादा पाई जाती थी अब उसका प्रकोप पूर्वी और दक्षिणी राज्यों में भी फैलने लगा है। टोरंटो विश्वविद्यालय के प्रभात झा इस अध्ययन पत्र के मुख्य लेखक हैं। उन्होंने बताया, भारत की अधिकतर आबादी ऐसे राज्यों में रहती है जहां इस तरह के मामले आम हैं। अध्ययन में जनगणना आंकड़ों और राष्ट्रीय सर्वेक्षण के जन्म आंकड़ों का विश्लेषण किया गया। इस विश्लेषण का मकसद ऐसे परिवारों में दूसरे बच्चे के जन्म में बालक-बालिका के अनुपात का अंदाजा लगाया जा सका जहां पहली संतान के रूप में बच्ची पैदा हो चुकी थी। अध्ययन में पाया गया कि 1990 में प्रति 1000 लड़कों पर 906 लड़कियां थीं जो 2005 में घटकर 836 रह गई। झा ने कहा कि अनुपात में यह गिरावट उन परिवारों में अधिक देखी गई जहां जन्म देने वाली मां ने दसवीं या उससे उच्च कक्षा की शिक्षा हासिल कर रखी थी और जो संपन्न गृहस्थी की थी। लेकिन ऐसे ही परिवारों में यदि पहला बच्चा लड़का है तो दूसरी संतान के मामले में लड़का-लड़की अनुपात में कोई कमी नहीं आई। उन्होंने कहा कि इससे यह सुझाव मिलता है कि कन्या भ्रूण का चुनिंदा गर्भपात शिक्षित एवं संपन्न परिवारों में ज्यादा मिलता है। ऐसी प्रवृत्ति आम तौर पर पहली संतान के लड़की होने के मामलों में देखी जाती है। 1980 के दशक में कन्या भ्रूण का चुनिंदा गर्भपात 0.20 लाख था, जो 1990 के दशक में बढ़कर 12 लाख से 40 लाख तथा 2000 के दशक में 31 लाख से 60 लाख तक हो गया।


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