Thursday, May 5, 2011

पंचायतों में महिलाओं का आधा राज


बिहार में वर्ष 2006 में जब पंचायतों में 50 फीसद आरक्षण के साथ विभिन्न पदों पर जीत कर आइर्ं तो चारों तरफ आरोपों के शोर थे-महिलाएं पंचायत नहीं चला सकती हैं। वह तो सिर्फ रबर स्टाम्प रहेंगी। काम तो उनके पति, बेटा, पिता, भाई या कोई पुरुष रिश्तेदार ही करेंगे। इन तानों को सुनते हुए भी महिला जनप्रतिनिधियों ने अपने हौसले नहीं खोए। तब द हंगर प्रोजेक्ट ने उस वक्त प्रदेश के चार जिलों के 1000 से अधिक महिला जनप्रतिनिधियों का क्षमतावर्धन करने तथा राजनीतिक गुर सिखाने का काम किया। आज यह अभियान बिहार के 17 जिले के 47 प्रखण्ड के 742 पंचायतों के 5000 संभावित महिला नेताओं के साथ सघन रूप से चलाया जा रहा है। इन प्रयासों के उत्साहवर्धक परिणाम मिले। फिर तो कई उदाहरण सामने आएं, जहां महिला जनप्रतिनिधियों ने अपने काम से पंचायत को नई दिशा दी। पांच साल की इस अवधि में उन्होंने पंचायतों में योजनाओं का क्रियान्वयन, निर्माण कार्य के साथ सामाजिक विकास के भी काम किए। महिला जनप्रतिनिधियों ने स्वशासन को सही संदभरें में समझने की कोशिश की। उन्होंने ग्राम सभा के साथ- साथ वार्ड सभा को भी तबज्जो दिया। लेकिन यह सच है कि बहुतेरी महिलाओं को न तो वास्तव में दायित्व के निर्वहण का अधिकार मिला और न ही निर्णय लेने की आजादी। पंचायतों में 50 फीसद आरक्षण ने सरकार, समाज एवं महिला नेतृत्व के पैरोकार के सामने नई बहस छेड़ दी है। बिहार पंचायती राज व्यवस्था में नित्य नई चुनौतियां बढ़ रही हैं। गौरतलब है कि जहां पहले दहेज में घर- परिवार के वैभव के सामान लिए जाते थे, अब वोट की खरीद के लिए महिलाओं पर दबाव बनाए जाते हैं। परिणामस्वरूप अब पंचायत में राजनीति करने की महत्त्वाकांक्षा रखने वाली महिलाओं के विरुद्ध हिंसा हो रही है। मुजफ्फरपुर जिले के पारू प्रखंड के जाफरपुर पंचायत की मुखिया प्रत्याशी प्रियंका अपनी जान गवां बैठी। कारण रहा-वोट खरीदने के लिए मायके से 2 लाख रुपए न ला पाना। इसी तरह की और भी कई घटनाएं हुईं जो साबित करती हैं कि महिलाओं के प्रति हिंसा के स्वरूप एवं कारणों में तब्दीली हुई है। यह एक नई चोट है-महिलाओं के राजनीतिक अधिकार पर। निस्संदेह बिहार के पंचायती राज व्यवस्था में महिला नेतृत्व की राहें बहुत मुश्किल हैं लेकिन बावजूद इसके वे पंचायत को अपना नेतृत्व देने के लिए उत्साहित हैं। 2011 के पंचायत चुनाव महिला नेतृत्व को बढ़ावा देने, समुदाय द्वारा उन्हें स्वीकार्य करने एवं सशक्त पंचायती राज हेतु स्वीप की तरफ से एक अभियान चलाया जा रहा है। यह पंचायत की राजनीति में महिलाओं की भागीदारी का उद्देश्य को स्थापित करने के लिए है। महिला नेतृत्व को पंचायत चुनाव में स्वीप कर, पंचायत से सभी कमजोर पहलुओं को दुरुस्त करना और समानता पर आधारित विकसित समाज बनाने की पहल करना है। बिहार में वर्ष 2011 का पंचायत चुनाव के तीसरे चरण से गुजर चुका है। अभी 7 और चरण बाकी हैं, जहां के मतदाता अपने गांव में अपने राज की अवधारणा को सफल बनाने के लिए योग्य नेतृत्व का चयन करेंगे। बेशक महिलाएं राजनीति के सकारात्मक मायने समझ चुकी हैं और वे अपनी इस महत्त्वपूर्ण भूमिका को खुल कर निभाने में लगी हुई हैं। पंचायत चुनाव के दस्तक देने से पूर्व ही महिलाओं ने चुनाव की रणनीति बनानी शरू की। उन्होंने महिला मतदाताओं को राजनीति और इसमें उनकी अहम भूमिका से भी अवगत कराया। पूर्व की महिला जनप्रतिनिधि पुन: पंचायतों में चुनकर आने और पिछले पांच सालों में सीखी गई बातों को जमीन पर उतारने के लिए व्याकुल हैं। दूसरी तरफ घर के आंगन की महिलाएं भी पंचायत की पगडंडियों पर अपने सफर की शुरुआत के लिए उतावली हैं। वह नेतृत्व करना चाहती हैं। अपनी पंचायत का, अपने समुदाय का, समाज का -जहां अभी बहुत काम करना बाकी है। सशक्त महिला नेतृत्व के माध्यम से मजबूत पंचायती राज का सपना तभी साकार होगा जब महिला समुदाय की सक्रिय और सजग भागीदारी पंचायती राज व्यवस्था में होगी।



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