Friday, January 21, 2011

आधी आबादी और शिक्षा


भारत में 6 से 14 साल तक के बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार का कानून भले ही लागू हो चुका हो, लेकिन इस आयु वर्ग की कुल लड़किय् में से 50 प्रतिशत लड़कियां तो हर साल स्कूलों से ड्राप् आऊट हो जाती हैं। जाहिर है, इस तरह से देश की आधी लड़कियां कानून से बेदखल होती रहेंगी। यह आंकड़ा म् तौर पर दो सवाल पैदा करता है- पहला, इस आयु वर्ग 19 करोड़ 20 लाख बच्चों में से आधी लड़कियां स्कू से ड्रॉप-आऊट क्यों हो जाती हैं? दूसरा, इस आयुवर्ग की आधी लड़कियां अगर स्कूलों से ड्राप-आऊट हो जाती ह तो बड़े परिदृश्य में मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार कानून का क्या अर्थ रह जाता है? इंटरनेशनल लेबर आर्गेनाइजेशन (1996) की रिपोर्ट में बताया गया था कि दुनिया भर में 33 तीन करोड़ 30 लाख लड़कियां काम पर जाती हैं, जबकि काम पर जाने वाले लड़कों की संख्या 4 करोड़ 10 लाख है लेकिन आंकड़ों में पूरे समय घरेलू कामकाज म् जुटी रहने वाली लड़कियों की कुल संख्या नहीं जोड़ी गयी। इसी तरह नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन्स राइट्स की रिपोर्ट ने भी बताया था कि भारत में 6 से 14 साल तक की अधिकतर लड़कियों को हर रोज औसतन 8 घंटे से भी अधिक समय केवल अपने घर के छोटे बच्चों को संभालने में बिताना पड़ता है। सरकारी आंकड़ों में भी दर्शाया गया है कि 6 से 10 साल की 25 प्रतिशत और 10 से 13 साल की 50 प्रतिशत (ठीक दोगुनी) से भी अधिक लड़कियों को हर साल स्कूलों से ड्रॉप-आऊट हो जाना पड़ता है। सरकार सर्वेक्षण (2008) में 42 प्रतिशत लड़कियों ने बताया कि वे स्कूल इसलिए छोड़ देती हैं क्योंकि उनके माताप्िाता उन्हें घर संभालने और अपने छोटे भाई-बहनों की देखभाल करने को कहते हैं। आखिरी जनगणना के मुताबिक, 22.91 करोड़ महिलाएं निरक्षर हैं। एशिया में भारत की महिला- साक्षरता दर सबसे कम है। एन्युअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (2008) के मुताबिक, शहरी और ग्रामीण इलाके की महिलाओं और पुरुषों के बीच साक्षरता दर क्रमश: 51.1 और 68.4 प्रतिशत दर्ज है। क्राईकी रिपोर्ट में 5 से 9 साल की 53 प्रतिशत भारतीय लड़कियां पढ़ना नहीं जानतीं। इनमें से अधिकतर रोटी के चक्कर में घर या बाहर काम करती हैं। ग्रामीण इलाकों में 15 प्रतिशत लड़कियों की शादी 13 साल की उम्र में ही कर दी जाती है। इनमें से तकरीबन 52 प्रतिशत लड़कियां 15 से 19 साल की उम्र में गर्भवती हो जाती हैं। इन कम उम्र की लड़कियों से 73 प्रतिशत (सबसे अधिक) बच्चे पैदा होते हैं। फिलहाल, इन बच्चों में 67 प्रतिशत (आधे से बहुत अधिक) कुपोषण के शिकार हैं। लड़कियों के लिए सरकार भले ही सशक्तिकरण के लिए शिक्षाजैसे नारे देती रहे लेकिन पिछला रिकॅर्ड बताता है कि नारे देना जितना आसान है, लक्ष्य तक पहुंचना उतना ही मुश्किल।
दूसरी तरफ कानून में मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकारकह देने भर से अधिकार नहीं मिल जाएगा, बल्कि यह भी देखना होगा कि मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार के मुनासिब, खासतौर से लड़कियों के लिए भारत में शिक्षा की बुनियादी संरचना है भी या नहीं? आज 6 से 14 साल तक तकरीबन 20 करोड़ भारतीय बच्चों की प्राथमिक शिक्षा के सामने पर्याप्त स्कूल, कमरे, प्रशिक्षित शिक्षक और गुणवत्तायुक्त सुविधाएं नहीं हैं। देश की 40 प्रतिशत बस्तियों में तो स्कूल ही नहीं हैं और इसी से जुड़ा एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि 46 प्रतिशत सरकारी स्कूलों में लड़कियों के लिए शौचालय की कोई व्यवस्था नहीं है। मुख्य तौर पर सामाजिक धारणाओं, घरेलू कामकाजों और प्राथमिक शिक्षा में बुनियादी व्यवस्था के अभावों के चलते एक अजीब-सी विडम्बना हमारे सामने है कि देश की आधी लड़कियों के पास अधिकार तो है, मगर बगैर शिक्षा के। इसलिए इससे जुड़े अधिकारों के दायरे में लड़कियों की शिक्षाको केंद्रीय महत्व देने की जरूरत है। माना कि यह लड़कियां अपने घर से लेकर छोटे बच्चों को संभालने तक के बहुत सारे कामों से भी काफी कुछ सीखती हैं। अगर यह लड़कियां केवल इन्हीं कामों में रात-दिन उलझी रहती हैं, भारी शारीरिक और मानसिक दबावों के बीच जीती हैं, पढ़ाई के लिए थोड़ा-सा भी समय नहीं निकाल पाती हैं तथा एक स्थिति के बाद स्कूल से ड्रॉप- आऊट हो जाती हैं तो यह देश की आधी आबादी के भविष्य के साथ खिलवाड़ ही हुआ!
आज की मांग है कि लड़कियों के पिछड़ेपन को लड़कियों की कमजोरी नहीं, बल्कि उनके खिलाफ मौजूद परिस्थितियों के रूप में देखा जाए। अगर लड़की है तो उसे ऐसे ही रहना चाहिए- जैसी बातें उनके सुधार के रास्ते में बाधाएं बनती हैं। लड़कियों की अलग पहचान बनाने के लिए जरूरी है, उनकी पहचान न उभर पाने के पीछे छिपे कारणों की खोजबीन और भारतीय शिक्षा पद्धति, शिक्षक तथा पाठ्यक्रमों की कार्यपण्राली की पुनर्समीक्षा। अंतत: लड़कियों की शिक्षा से जुड़ी इन बाधाओं को सोचे-समझे और तोड़े बगैर शिक्षा के अधिकारका बुनियादी मकसद पूरा नहीं हो सकता। (लेखक क्राई इंडियासे जुड़े हैं)

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