Thursday, February 3, 2011

उत्तर प्रदेश में बढ़ रहे हैं महिला उत्पीड़न के मामले


महिलाओं को उत्पीड़न से बचाने के लिए बनाए गए ढेरों कानून फिलहाल बेमानी ही साबित हो रहे हैं। देश के विभिन्न राज्यों से जुटाए गए आंकड़े तो कुछ ऐसी ही तस्वीर बयां करते हैं। राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष गिरिजा व्यास ने इन आंकड़ों पर चिंता व्यक्त की और कहा कि यह स्थिति तब है, जबकि न जाने कितने मामले ऐसे होते हैं, जिनमें शिकायत ही दर्ज नहीं की जाती। वह महिलाओं के कानूनी अधिकार विषयक गोष्ठी को संबोधित कर रहीं थीं। डा. व्यास ने उत्तर प्रदेश में लगातार हो रही घटनाओं पर चिंता जाहिर की। महिला सुरक्षा कानूनों की उन्होंने हिमायत की और कहा कि पांच ऐसे बिंदु हैं जिनका अनुपालन किया जाना चाहिए, तभी सही मायने में महिलाएं इन कानूनों के तहत सुरक्षित रह सकती हैं। इसमें सख्त कानून, सही ढंग से अनुपालन, जागरूकता, सामाजिक संगठनों की भूमिका व मीडिया की भूमिका महत्वपूर्ण है। डा. व्यास ने कहा कि बलात्कार की शिकार महिलाओं को जीने का अधिकार है। ऐसी महिलाओं के लिए पुनर्वास योजना शुरू की जा रही है। आयोग ने सिफारिश की है कि त्वरित तलाक के मामले में कोर्ट को तब तक तलाक नहीं देना चाहिए, जब तक महिला आर्थिक रूप से सुदृढ़ न हो जाए। भारत सेवा आश्रम की अध्यक्ष शुभा राज मिश्रा ने कहा कि महिला उत्पीड़न के मामले में उत्तर प्रदेश अव्वल है। डॉ.व्यास ने प्रदेश में महिलाओं के ऊपर हुए जुल्म के जो आंकडे़ प्रस्तुत किए उसके अनुसारवर्ष 2010 में बलात्कार के 1290 मामले, दहेज हत्या के 2052, उत्पीड़न के 7,468 व छेड़छाड़ के 2077 मामले दर्ज किए गए। इससे ज्यादा संख्या ऐसे मामलों की है, जिनमें रिपोर्ट ही दर्ज नहीं की गई।


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