Saturday, February 12, 2011

नजीर बनतीं मिस्र की महिलाएं


मिस्र में हालात अब तेजी से बदल रहे हैं। बीते एक पखवाड़े से काहिरा का तहरीर चौक लगातार अंतरराष्ट्रीय मीडिया में छाया हुआ है। तहरीर चौक पर राष्ट्रपति होस्नी मुबारक के खिलाफ इकट्ठे हुए प्रदर्शनकारियों में इस मुल्क की आधी आबादी यानी महिलाओं ने अपनी उल्लेखनीय भूमिका निभाई है। हाल में एक अखबार के पहले पन्ने पर तहरीर चौक पर थकी-मांदी सो रही एक बच्ची की तस्वीर छपी, जिसके माथे पर अरबी में लिखा हुआ था मेरी आत्मा, मेरा दिल मिस्र है। वास्तविक लोकतंत्र को हासिल करने के इस अहिंसक संघर्ष में हर उम्र की महिलाओं का कारवां आगे बढ़ता नजर आया। इस संक्रमण दौर में उनकी भूमिका आगे की ओर बढ़ते हुए कदम हैं, ये मिस्र के इन ऐतिहासिक पलों की अत्यंत महत्वपूर्ण पात्र हैं। महिलाओं के ये बयान पढ़ने-सुनने को भी मिले कि वे मिस्र में बदलाव लाने के लिए पुरुषों के साथ मिलकर काम कर रही हैं। अलेक्जेंडर ब्लैकमैन जो काहिरा में सेंटर फॉर अरबी स्टडी एबोर्ड में फेलो हैं, लिखती हैं कि पुरुषों की तरह ही विरोध करने वाली महिलाएं मिस्र के सभी सामाजिक-आर्थिक वर्गो, धर्मो व पीढि़यों से तहरीर चौक पर नजर आती हैं। किसी ने नकाब तो किसी ने पूरा चेहरा ढका हुआ है तो कोई डिजायनर जींस पहनी हुए हैं। धूप के चश्मे पहनी युवा लड़कियों, महिलाओं के हाथों में लोकतंत्र के पोस्टर दिखाई दिए। वह पुलिस का सामना करने में भी पीछे नहीं रहीं। संगठित होकर रणनीति अपनाई और अपने अपने काम बांट लिए। कुछ ने होस्नी मुबारक के खिलाफ व लोकतंत्र के पक्ष में नारे लगाने का जिम्मा लिया तो कुछ ने सुरक्षा का काम संभाला। दरअसल राजनैतिक हकों वाले इस संघर्ष में उन्होंने आगे की कतार में खड़े होकर पुलिस विरोध का मुकाबला किया और हजारों की भीड़ के सामने नारेबाजी का नेतृत्व करने में भी पीछे नजर नहीं आई। मिस्र के इतिहास पर नजर डालें तो 1919 1922 में वहां ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खिलाफ जो राजनैतिक विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ, उसमें छात्र, सिविल अधिकारी, व्यापारी यूनियन, पुरुषों व महिलाओं ने भी शिरकत की। उच्च मध्य वर्ग की महिलाएं राष्ट्रवादी नेताओं से प्रभावित होकर विरोध प्रदर्शन के लिए बाहर निकलीं तो गरीब महिलाएं भी पीछे न रहीं। बीसवीं सदी के दूसरे दशक में मिस्र की महिलाओं ने राजनैतिक संघर्ष में जो भूमिका निभाई वह आगे चलकर विस्तृत होती गई। बेशक 1919 की मिस्र क्रांति महिलाओं के शमिल होने व उनके राष्ट्रीय मुद्दों से जुड़ने पर रोशनी डालती है, मगर इतिहास यह भी बताता है कि चार साल बाद जो संविधान लिखा गया, उसमें महिलाओं को उनके राजनीतिक अधिकारों से वंचित रखा गया यानी वे पुरुषों की तरह न तो वोट डाल सकतीं थी और न ही चुनाव लड़ सकती थीं। यहां अगर उनकी भारतीय महिलाओं से तुलना करें तो उन्हें अपने राजनैतिक अधिकार हासिल करने के लिए अधिक संघर्ष करना पड़ा। भारतीय महिलाओं को आजादी के बाद पुरुषों के समान ही चुनाव लड़ने व वोट डालने का अधिकार मिल गया था, जबकि मिस्र की महिलाओं को इसके लिए लंबा संघर्ष करना पड़ा। 1923 में नारीवादी आंदोलन की शुरुआत उस समय हुई, जब काहिरा के रेलवे स्टेशन पर महिलाओं ने नकाब उतारते हुए कहा कि यह अब अतीत की बात है। नारीवादी आंदोलन ने महिलाओं को उनके राजनैतिक अधिकार दिलाने के लिए सरकार पर दबाव बनाने का काम किया। 1947 में मिस्र वीमेन एसोसिएट ने महिलाओं को मताधिकार देने के लिए चुनाव संबंधी कानून में संशोधन की मांग की। इस मांग में महिलाओं को पुरुषों के बराबर मत देने के अधिकार के साथ ही स्थानीय व प्रतिनिधित्व काउंसिल में पहुंचने का अधिकार भी शमिल था। 1952 में इस देश में फिर क्रांति हुई और 1956 में महिलाओं को पुरुषों के बराबर मत डालने का अधिकार मिल गया। 1962 में देश में पहली बार एक महिला को मंत्री बनाया गया। यह घटना वहां के मुस्लिम समाज में एक ऐतिहासिक लकीर बनी। दरअसल, जब महिलाओं को उनके राजनैतिक अधिकार दिए गए तो उस समय तक इस बात को स्वीकार लिया गया था कि महिलाओं को उनके अधिकार न देना लोकतंत्र के नियमों का विरोध करना है। ऐसे राजनैतिक अधिकार मिलने से अन्य क्षेत्रों में भी महिलाओं के अधिकार बढ़े व उनके आगे बढ़ने का मार्ग खुला है। इससे महिलाओं की भागीदारी विस्तृत हुई। उच्च पदों पर उनकी नियुक्ति का माहौल बनने लगा और पुरानी रुढि़वादी सोच को चुनौती मिलने लगी। आज मिस्र में महिलाएं चुनाव लड़ती हैं, वह सरकार में मंत्री भी बनती हैं। जज और राजदूत के पदों पर भी हैं। अपनी पंसद की पोशाक के साथ तहरीर चौक पर तानाशाही रवैये वाले राष्ट्रपति होस्नी मुबारक के विरोध में हजारों की संख्या में नजर आती हैं और अंतरराष्ट्रीय मीडिया उनकी इस महत्वपूर्ण भूमिका का बार-बार जिक्र भी करता है। इस तहरीर चौक पर महिलाओं को इकट्ठा होने के आह्वान के साथ-साथ उन्हें कुछ हिदायतें भी उन तक पहुंचा दी गई थीं। मसलन, प्रदर्शनकारी युवतियों, महिलाओं से सुरक्षा बलों व ठगों के यौन हमलों से बचने के लिए बदन पर ड्रेस के दो जोड़े पहनकर आने को कहा गया। इसी तरह दो स्कॉर्फ के साथ आने को कहा गया। इसके पीछे उनकी चिंता यह थी कि अगर यौन हमले में उनके बदन पर पहनी पहली परत वाली ड्रेस फाड़ दी जाती है तो वे घबराएं नहीं। ऐसे में ड्रेस की दूसरी परत उनकी सुरक्षा कवच बनेगी। यौन हमलों का उद्देश्य इन महिलाओं को निशाना बनाकर उन्हें अपमानित करना हो सकता है। महिलाओं को इस बावत आगाह रहने के लिए तैयार रहने के पीछे वजह यह थी कि कुछ साल पहले होस्नी मुबारक के शासन काल में सुरक्षा बलों का इस्तेमाल महिलाओं पर यौन हमलों के लिए किया गया था। महिलाओं के अधिकारों की आवाज उठाने वाली इस देश की जानी-मानी नारीवादी नवल इल सादावी को राजनीतिक बंदी बनाया गया। फिर देश निकाला दिया गया। अब वह तहरीर चौक लौट आई हैं। अपने एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि महिलाएं व लड़कियां, पुरुषों व लड़कों के साथ गलियों में खड़ी हैं। हम न्याय, आजादी, बराबरी व वास्तविक लोकतंत्र और एक ऐसे नए संविधान की मांग कर रहे हैं जिसमें महिलाओं व पुरुषों के बीच कोई भेदभाव न हो। मुस्लिम, ईसाई के बीच कोई भेदभाव न हो। हम व्यवस्था में बदलाव की मांग कर रहे हैं ताकि वास्तविक लोकतंत्र की स्थापना हो सके। राजनीतिक आंदोलनों में महिलाएं हिस्सा लेती रही हैं, पर इस भागीदारी, उनके जुड़ने वाली भूमिका व योगदान के बेहतर नतीजे नहीं आए। अपने देश की दिवंगत महिला नेता प्रोमिला दंडवते ने एक बार अफसोस जताते हुए कहा था कि जिस तरह आजादी की लड़ाई में भारतीय महिलाओं ने उल्लेखनीय भूमिका निभाई थी, उस अनुपात में उन्हें देश आजाद होने के बाद उन्हें उनका हिस्सा नहीं मिला। कमोबेश ऐसे ही हालातों के कारण महिलाओं को और अधिक संघर्ष करने व राजनीति में उचित प्रतिनिधित्व के लिए दबाव बनाए रखने में अपनी ऊर्जा का एक बहुत बड़ा हिस्सा खर्च करना पड़ता है। मिस्र की महिलाओं का भी मानना है कि इस संघर्ष, प्रतिरोध के खत्म होने के बाद भी उन्हें आजादी व बराबरी के लिए चौकस रहना होगा। (लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

5 comments:

  1. बहुत सुन्दर अभिब्यक्ति| धन्यवाद|

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  2. इस बात में कोई भी दो राय नहीं है कि लिखना बहुत ही अच्छी आदत है, इसलिये ब्लॉग पर लिखना सराहनीय कार्य है| इससे हम अपने विचारों को हर एक की पहुँच के लिये प्रस्तुत कर देते हैं| विचारों का सही महत्व तब ही है, जबकि वे किसी भी रूप में समाज के सभी वर्गों के लोगों के बीच पहुँच सकें| इस कार्य में योगदान करने के लिये मेरी ओर से आभार और साधुवाद स्वीकार करें|

    अनेक दिनों की व्यस्ततम जीवनचर्या के चलते आपके ब्लॉग नहीं देख सका| आज फुर्सत मिली है, तब जबकि 14 फरवरी, 2011 की तारीख बदलने वाली है| आज के दिन विशेषकर युवा लोग ‘‘वैलेण्टाइन-डे’’ मनाकर ‘प्यार’ जैसी पवित्र अनुभूति को प्रकट करने का साहस जुटाते हैं और अपने प्रेमी/प्रेमिका को प्यार भरा उपहार देते हैं| आप सबके लिये दो लाइनें मेरी ओर से, पढिये और आनन्द लीजिये -

    वैलेण्टाइन-डे पर होश खो बैठा मैं तुझको देखकर!
    बता क्या दूँ तौफा तुझे, अच्छा नहीं लगता कुछ तुझे देखकर!!

    शुभाकॉंक्षी|
    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’
    सम्पादक (जयपुर से प्रकाशित हिन्दी पाक्षिक समाचार-पत्र ‘प्रेसपालिका’) एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
    (देश के सत्रह राज्यों में सेवारत और 1994 से दिल्ली से पंजीबद्ध राष्ट्रीय संगठन, जिसमें 4650 से अधिक आजीवन कार्यकर्ता सेवारत हैं)
    फोन : 0141-2222225(सायं सात से आठ बजे के बीच)
    मोबाइल : 098285-02666

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  3. हिन्दी ब्लाग जगत में आपका स्वागत है, कामना है कि आप इस क्षेत्र में सर्वोच्च बुलन्दियों तक पहुंचें । आप हिन्दी के दूसरे ब्लाग्स भी देखें और अच्छा लगने पर उन्हें फालो भी करें । आप जितने अधिक ब्लाग्स को फालो करेंगे आपके अपने ब्लाग्स पर भी फालोअर्स की संख्या बढती जा सकेगी । प्राथमिक तौर पर मैं आपको मेरे ब्लाग 'नजरिया' की लिंक नीचे दे रहा हूँ आप इसका अवलोकन करें और इसे फालो भी करें । आपको निश्चित रुप से अच्छे परिणाम मिलेंगे । कृपया जहाँ भी आप ब्लाग फालो करें वहाँ एक टिप्पणी अवश्य छोडें जिससे दूसरों को आप तक पहुँच पाना आसान रहे । धन्यवाद सहित...
    http://najariya.blogspot.com/

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  4. इस सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्‍लॉग जगत में स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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