Thursday, April 7, 2011

कन्याओं के लिए कहर बनी बढ़ती साक्षरता


लोगों ने अक्षर ज्ञान तो बढ़ा लिया, लेकिन रूढि़यों के चंगुल से मुक्त न हो सके। देश में पढ़े-लिखे लोग फैमिली प्लानिंग करने लगे हैं, मगर सिर्फ बेटों की। वर्ष 2011 की जनसंख्या के आंकड़े गवाही दे रहे हैं कि ऐसी जगह 6 साल तक की उम्र वाली बेटियों की संख्या कम हुई है जहां साक्षरता दर तेज गति से बढ़ी है। दूसरी ओर ऐसे जिले जहां साक्षरता में तो खास इजाफा नहीं हुआ पर बच्चियों की औसत संख्या जरूर बढ़ी। यह हाल राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से लेकर यूपी, उत्तराखंड और मप्र जैसे राज्यों में देखने को मिला है। शुरुआत राजधानी दिल्ली से करते हैं। यहां दस वर्ष के अंदर 6 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिंगानुपात में कमी आई है। इस आयु वर्ग की बच्चियों की संख्या वर्ष 2001 में प्रति हजार बालकों के मुकाबले 927 थी जो 2011 में घटकर 914 रह गई है। इसमें भी संभ्रांत इलाकों में कन्याओं के लैंगिक अनुपात में ज्यादा गिरावट आई है। ये इलाके हैं दक्षिणी, नई दिल्ली और उत्तरी दिल्ली आदि, जबकि यहां अधिकतर लोगों के पास न तो पैसे की कमी है, और न ही शिक्षा की। उत्तर प्रदेश में साक्षरता बढ़ने के बावजूद बेटियों से परहेज जारी है। इसे विडंबना ही कहेंगे कि 2001-11 के दौरान सूबे में जहां महिलाओं की आबादी की वृद्धि दर पुरुषों से अधिक रही, वहीं इस अवधि में 0-6 वर्ष आयु वर्ग में प्रति एक हजार लड़कों पर 17 लड़कियां कम हो गई हैं। पहले जहां लड़कियों की संख्या 916 थी, वहीं अब यह घटकर 899 रह गई है। दूसरी ओर सूबे के जिन जिलों की साक्षरता दर कम है, वहां लिंगानुपात बढ़ा है। मसलन बलरामपुर में साक्षरता दर 51.76 फीसदी है, लेकिन यहां 0-6 वर्ष आयु वर्ग का लिंगानुपात 968 है जो सूबे में सर्वाधिक है। इसी तरह बहराइच की साक्षरता दर 51.10 प्रतिशत है, जबकि इस आयु वर्ग में लिंगानुपात 933 है। शिक्षा का यह साइड इफेक्ट उत्तराखंड में भी साफ दिखाई देता है। राजधानी देहरादून की साक्षरता दर 6 फीसदी बढ़कर 85.24 प्रतिशत हो गई है लेकिन 0-6 वर्ष तक के आयु वर्ग का लिंगानुपात 2001 में 894 के मुकाबले 5 अंक घटकर 889 रह गया है। चमोली, पौड़ी व पिथौरागढ़ जिले में तो यह फासला 30 से 90 अंको तक का हो गया है। मप्र का भी हाल कुछ ऐसा ही है। आदिवासी अंचल जो शहरी इलाकों की अपेक्षा कम साक्षर क्षेत्र माना जाता है, उनमें 0-6 आयु वर्ग तक के बच्चों का लिंगानुपात बेहतर हुआ है। आदिवासी बहुल जिले अलिराजपुर में इस आयु वर्ग की बेटियों की संख्या प्रति एक हजार बालकों के मुकाबले 971 हो गई है|

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