Saturday, April 9, 2011

आरटीआइ की लाठी से व्यवस्था सुधार में जुटी महिलाएं


सूचना अधिकार कानून ने बिहार की महिलाओं को सशक्त बना दिया है। ग्राम पंचायतों में काबिज महिला जनप्रतिनिधि केंद्रीय योजनाओं को लागू कराने के लिए इस कानून का सहारा ले रही है। भत्ता मिलने में टालमटोल हो, वृद्धावस्था पेंशन या फिर इंदिरा आवास की जानकारी महिलाएं सूचना अधिकार कानून के तहत बाबुओं व अफसरों से अपनी बातें मनवा रहीं हैं। कर्तव्य की नाव को पार लगाने में इन प्रतिनिधियों के लिए आरटीआइ पतवार का काम कर रही है। सासाराम जिले के धौडाढ़ पंचायत प्रतिनिधियों को भत्ता नहीं मिल रहा था। मुखिया टालमटोल कर रहे थे। प्रखंड कार्यालय में भी कोई सीधे मुंह जवाब नहीं दे रहा था। सामाजिक व आर्थिक रूप से पिछड़ीं इन महिलाओं को भत्ता न मिलने से पंचायत की बैठक निर्रथक लगने लगी। त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था के सबसे निचले पायदान वाली वार्ड सदस्य रामामुनी देवी की अगुवाई में बीडीओ कार्यालय से आरटीआइ के तहत जानकारी मांगी गयी। जिसका तुरंत असर हुआ। जानकारी दी गई कि पंचायत सदस्यों को प्रति बैठक 100 रुपये तथा दलित पिछड़े सदस्यों को विशेष भत्ते के रूप में 100 रुपये दिए जा चुके हैं। इस मद में पंचायत को 22326 रुपये जारी होने की जानकारी दी गई।आरटीआइ के खुलासे पर बगले झांकते मुखिया ने मजबूरन सदस्यों को पैसा रिलीज किया। बेलाढ़ी पंचायत की वार्ड सदस्य गीता देवी ने वृद्धावस्था पेंशन के फार्म जमा किये। पर नाम सूची में नहीं थे। गीता ने आरटीआइ के तहत अपने वार्ड के पेंशनधारियों की सूची मांगी है। अमरी पंचायत की धर्मशीला देवी ने वार्ड के बीपीएल को इंदिरा आवास नहीं मिला तो आरटीआइ के तहत कार्यालय से जानकारी मांगी। कई महिला प्रतिनिधियों ने आंगनबाड़ी से संबंधित सूचनाएं मांगी हैं। राज्य में महिला जनप्रतिनिधियों के बीच कार्य कर रही हंगर प्रोजेक्ट की शाहिना परवीन कहती हैं कि पंचायती राज व्यवस्था में ग्रामीण महिलाओं के आगे आने से व्यवस्था में निश्चित रूप से परिवर्तन होगा। अब इनके कर्तव्य निर्वहन के लिए यह अधिकार एक पतवार के रूप में काम कर रहा है। भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ने के साथ -साथ महिला जनप्रतिनिधियों के महत्व को भी स्थापित कर रहा है। लोग कहते हैं कि अब वह दिन दूर नहीं जब ये आरटीआइ वाली महिलाएं पंचायतों में महिला आरक्षण को सार्थकता प्रदान करेंगी।


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