Friday, April 22, 2011

प्यार+पुरुष = प्रचार


औरतों को खुद को महान दिखाने के लिए जरूरी है, अपनी भावनाओं को कुचल डालें। वे जो वास्तव में हैं, उसको छिपा लें! बने-बनाये रिश्तों को मासूमियत के साथ जीने का ढोंग करती रहें। मन में भी किसी की छवि आ जाए तो स्यापा करने लगें। प्रेम हो भी जाए तो मौन रहें। प्रेम-प्रदर्शन से बचें! इस दिखावे के चक्कर में होता यही है कि वे चिड़चिड़ी, झगड़ालू और शकी होती जाती हैं
मशहूर उद्योगपति रतन टाटा अपनी तमाम व्यावसायिक बुलंदियों की बजाए इस दफा अपने प्रेम- संबंधों को लेकर र्चचा में हैं। उन्होंने बेहद खुले मन से किसी विदेशी चैनल को इंटरव्यू देते हुए स्वीकारा कि वे जीवन में चार बार 'सीरियस' प्रेम में पड़े। धुरंधर उद्योगपति की यह सीरियसली प्रेम करने वाली अदा सबको बड़ी भायी। यह धन-कुबेर यहां सलमान खान से पिछड़ भले ही गया, पर इस उम्र में यह कहकर कि वे लगभग शादी करने ही जा रहे थे कि दो देशों की जंग छिड़ गई और उनका दांपत्य बनते-बनते रह गया। अपने दर्द को छिपाने का प्रयास करते हुए उन्होंने माना कि जो हुआ, वह अच्छा ही रहा। मानो उनके घर में हमारे-आपके घर की तरह कोई कलह होने जा रही थी। अब तो फिल्म इंडस्ट्री के सबसे बड़े कुंवारे सलमान भी मानने लगे हैं कि इश्क तो ठीक है पर शादी की जिम्मेदारी उनको डराती है। इसको उनकी बेबाकी मान कर अनसुना सा किया जा सकता है पर यह अधिकार किसी औरत को देने में सबकी नानी मरती है? निश्चित रूप से पुरुषों की कुछ ज्यादा ही। इस तरह का कोई खुलासा करते हुए हमारी औरतें घबरा क्यों जाती हैं! टाटा को प्यार चार बार हो सकता है, सलमान को दस बार, राजेश खन्ना छह और महेश भट्ट पांच बार प्यार करते हैं। ये इसीलिए ऐसा कर पाते हैं क्योंकि इन्होंने यह अधिकार बेहद बेदर्दी से हमेशा से छेंक रखा है। अपने प्रेम पर इतराना और उसको छोड़ कर आगे बढ़ जाना पुरुष के लिए संतोषजनक होता है, पर स्त्री के लिए नहीं। शायद यही कारण है कि पुरुष एक साथ कई लड़कियों को 'टहला'
लेता है, जबकि औरत एक बार में एक पर ही 'कन्संट्रेट' करती है। यहां मैं उनकी बात कतई नहीं कर रही, जो पुरुषों का इस्तेमाल किसी परपज से कर रही होती हैं, क्योंकि इसमें संवेदना नहीं होती। प्रेम की आड़ में होने वाले खिलवाड़ों को भावनात्मक लगाव से न जोड़ा जाना ठीक है। लाभ के लोभ में बनाया गया कोई भी रिश्ता टेम्प्रेरी ही होता है। अपने यहां यूं भी औरतों को रिश्तों में बांध कर किसी अंधेरे कोने की तरफ फेंक देने की पुरानी परंपरा है। कई-कई औरतों से संबंध रखने को पुरुष अपनी सत्ता से जोड़ता है। जो ताकतवर है, पावरफुल है, धनवान और वीर्यवान है, उसकी तरफ आकर्षित होने वाली हर स्त्री उसकी गुलाम ना भी हो तो भी उसके लोभों को नहीं पहचाना जा सकता। ऐसा पहले भी होता था, आज भी हो रहा है और आगे भी होता रहेगा। प्रेम प्राकृतिक जरूरत है। सब चाहते हैं, उनको कोई ना कोई प्यार करे। प्रेमविहीन जीवन वही जी सकता है, जिसके भीतर किसी तरह की कोई संवेदनशीलता ही शेष ना हो। हम खुद कुछ करें ना करें, पर दूसरों से यही उम्मीद रखते हैं कि वे हमको जबर्दस्त रूप से चाहें। अब आते हैं इस प्रेम की चाहना के स्त्रीवादी पक्ष पर। पुरुषों ने क्योंकि औरत को कभी 'वस्तु' से ज्यादा कुछ माना ही नहीं, इसलिए उनकी सारी की सारी प्रतिक्रियाएं आज भी इसी दुविधा की शिकार हैं। जब वे ये लफ्फाजियां कर रहे होते हैं कि उन्होंने इतनी औरतों से प्रेम किया, तो वे अपनी भावनाओं के बल पर नहीं फेंक रहे होते, वे अपने पावर को एन्ज्वॉय करने और कराने की कोशिश में होते हैं। ऐसा नहीं है कि यह केवल धन वालों या पराक्रमियों का ही अंदाज है। सामाजिक जीवन में गरीब से गरीब पुरुष के कई औरतों से संबंध होते हैं। घर-घुस्सू औरतें भी पति के भाई, बहनोई, युवा होते भतीजों-भांजों की गिरफ्त में आ ही जाती हैं। कई बार ये उड़ानें बहुत सीमित होती हैं तो कभी-कभी जबरदस्त नजदीकियों के बावजूद परिवार पर आने वाली आंच के भय से दूरियां जानबूझ कर बढ़ा ली जाती हैं। यह सच है कि प्रेम पर किसी का जोर नहीं होता, पर उससे भी बड़ा सच है कि पुरुषों को प्रेम-प्रदर्शन के मौके बारम्बार मिलते हैं, जबकि औरतों के प्रेम पर पहरे होते हैं। औरतों पर शुचिता के इतने कड़े पहरे रहते हैं कि उनको भावनाओं को काबू रखने की कला अनजाने ही सीखनी पड़ती है। बल्कि यह कहना ज्यादा ठीक होगा कि औरतों को बार-बार अपनी शुचिता के इम्तिहान से गुजरना पड़ता है। यह इम्तिहान भले ही सीता माता की तरह अग्नि परीक्षा जैसा ना हो, पर धधकती हुई मानसिक आग में कूदने जैसा तो होता ही है। मनोविज्ञान कहता है कि किसी को जीवन में कई बार भी प्यार हो सकता है, जैसा कि टाटा या सलमान को होता रहता है। सैफ अली का प्यार भी साल दर साल बदलता है पर उनकी फैन्स लिस्ट ज्यों की त्यों रहती है। करीना का शाहिद कपूर को डिच (धोखा) करना युवाओं को अखरता है। युवक तो युवक, लड़कियां भी करीना से नाराज हो जाती हैं। पांच शादियां करने वाले हरफनमौला किशोर कुमार ने प्यार ना जाने कितनी औरतों से किया होगा? ये बड़े लोग हैं। संपन्न हैं। समृद्धि इनके कदम चूमती है। ये चुटकियों में जो चाहें, उसे कदमों में गिराने का माद्दा रखते हैं। इनके प्यार पर किसी घर-परिवार-समाज का दबाव नहीं होता। इनकी इज्जत भी हमारी-आपकी इज्जत की तरह जरा सी पोटली में नहीं होती, विशाल खजाने सी इज्जत कितना भी गिरने पर गुमती नहीं। सीना चौड़ा करके ये एलानियां दंभ दिखाते हैं, इतने प्यार किये, लगभग बीवी की तरह रखा, शादी करते-करते छोड़ दिया। पर यही बात जब मीना कुमारी, रेखा या दूसरी हीरोइनों के लिए आती है तो भौंएं तन जाती हैं। लता दीदी को प्यार करते देखने की हिम्मत ना जुटा पाने वालों की भी यही दिक्कत है। उनकी शुचिता का ठेका जो ले रखा है हमने। औरतों को खुद को महान दिखाने के लिए जरूरी है अपनी भावनाओं को कुचल डालें। वे जो वास्तव में हैं, उसको छिपा लें। बने-बनाये रिश्तों को मासूमियत के साथ जीने का ढोंग करती रहें। मन में भी किसी की छवि आ जाए तो स्यापा करने लगें। प्रेम हो भी जाए तो मौन रहें। प्रेम-प्रदर्शन से बचें। इस दिखावे के चक्कर में होता यही है कि वे चिड़चिड़ी, झगड़ालू और शकी होती जाती हैं। अपने इसी प्रेम को दबाने की खीज के चलते वे पति पर पाबंदियां थोपती फिरती हैं। उसको चाय-नाश्ते के साथ विशेषज्ञ की नाइर्ं सीख देती रहती हैं कि 'लड़कियों से खबरदार, उनसे दूरी बनाये रखो।' यह मिस कॉल किसकी थी, वह एसएमएस क्यों आया? अकसर यह भी हिदायत देने से वे बाज नहीं आतीं कि कुंवारी लड़कियां काला जादू करा कर ब्याहता मदरे को अपने कब्जे में करने के गुर जानती हैं। दरअसल, खुद के कहीं और आकर्षित हो जाने के भय से विमुख होने के ढोंग में वे नीरस होती जाती हैं। कॉलेज के रास्ते में आने वाला, घर से बाहर दिखता, कहीं पड़ोस में, रिश्तेदारों में, परिवार के चचेरे-ममेरे भइयाओं और दादाओं के आकर्षण में कभी ना कभी कैद रही युवा होती लड़की के जीवन का वही आइडियल होता है। 14 से 18 साल की उम्र ही ऐसी होती है, जिसमें किसी के आकर्षण की गिरफ्त में आने से शायद ही कोई बचता है। टाटा कहते हैं- चार बार प्रेम हुआ, वे इसको आकर्षण नहीं बता रहे। आकर्षण यानी अंग्रेजी का 'इनफैचुएशन' बार-बार होता है। बस दोनों का फर्क समझने में लोग फेल हो जाते हैं। अपनी गऊ टाइप औरतों के प्रेम के चरित्र भी बदलते हैं, अपने दायरे में ही वे सबसे पहले (अनजाने ही) अपने किसी बड़े भइया/छोटे चाचा की दीवानी हो जाती हैं। कम उम्र में ही ब्याह दी गई तो देवर या ननदोई की, थो ड़ा आगे चले तो पति के साथ काम करने वाले किसी शर्माजी/चोपड़ाजी की अदाओं पर मर मिटने लगती हैं। अधेड़ होने तक बच्चों के टय़ूशन टीचर या बॉलीबाल मास्टर पर दिल आ सकता है। यह सिलसिला यूं ही सारा जीवन चलता रहता है। पर अपने प्रेम-संबंधों को लगातार दोहरा कर शेखी बघारने वाला पति नाम का पुरुष अपनी औरत के इस आकर्षित होने को भी वैर-भाव से ही लेता है। अपने अंदाज में जीने के लिए चर्चित रही एलिजाबेथ टेलर की मौत की खबर में सबसे महत्व जिसको मिला, वह उनकी प्रतिभा या ऑस्कर विजेता होना नहीं था, बल्कि उनकी आठ शदियां थीं जिनके बारे में सुन/पढ़ कर हर मन आज भी ललचा उठा। कोई आपके जीवन में आया ही नहीं या आपका मन किसी के लिए मचला ही नहीं, यह तो इम्पॉसिबिल है। हां, आप यह मान सकती/सकते हैं कि आपका साहस चुक गया, आप डर गये, आपका आत्मविश्वास डगमगा गया, सामाजिक-पारिवारिक दबावों की घुटन में हिम्मत जवाब दे गई ..या फिर यह भी कि आपको उसका अहसास ही तब हुआ, जब सबकुछ खत्म हो चुका था।


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