Saturday, April 23, 2011

पूजिए न सही, रौंदिए तो नहीं !


एक ही रास्ता बचता है कि अपनी सुरक्षा स्वयं करो के सिद्घांत को अपनाते हुए नारी उठ खड़ी हो। वह अपने मन से दीनता व हीनता के भाव को निकाल फेंके। नारी को अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी, आंचल में है दूध और आंखों में पानी.. की छवि से छुटकारा पाना होगा। वह अपनी शक्ति को पहचाने। उसे यह भी सिद्घ करना होगा कि वह बेटी, बहन और ममतामयी मां के अलावा जरूरत पड़ने पर दुर्गा का रूप भी धारण करना जानती है..अप्रैल की शाम जब सारा देश सामाजिक समरसता व न्याय की बात कहने वाले डॉ. भीमराव अंबेडकर की अगले दिन मनाई जानेवाली जयंती की तैयारियों में जुटा था, उसी समय उत्तर प्रदेश के जनपद फरूखाबाद के गांव बखतेरापुर में चार दरिंदों ने खेत पर काम कर रही एक नाबालिग छात्रा तान्या को अगवा कर लिया। दरिंदों ने उसकी अस्मत लूटने के बाद गला दबाकर हत्या कर दी। इस कांड की गूंज दिल्ली तक पहुंच चुकी है। हालांकि दुष्कर्म की यह कोई पहली घटना नहीं है। शायद ही कोई दिन ऐसा बीतता हो, जिस दिन दिल दहला देने वाली ऐसी घटनाओं से अखबारों के पन्ने रंगे न होते हों। कभी-कभी ऐसी खबरें भी प्रकाश में आती हैं, जिनमें किसी मासूम बालिका की अस्मत लूटने वाला उसका कोई सगा संबंधी ही होता है। ये घटनाएं मन को झकझोर देती हैं। तब ऐसा लगता है कि आधी आबादी न घर के भीतर सुरक्षित है और न बाहर। सभ्य कहे जानेवाले हमारे देश में तेजी से बढ़ रही ये घटनाएं गंभीर चिंता का विषय हैं। इन घटनाओं से यत्र नार्यस्तु पूज्यंते, रमंते तत्र देवता और विभिन्न अवसरों पर की जानेवाली नारी सशक्तीकरण व महिलाओं को पुरुषों के समान दर्जा दिए जाने की बातें बेमानी लगने लगती हैं। 

कैसी विडंबना है कि एक ओर नारी को पूजने की बात कही जाती है, वहीं दूसरी ओर असामाजिक तत्व उसे रौंदने से बाज नहीं आते हैं। जरा सोचिए कि इस त्रासदी का शिकार महिला के दिल पर क्या गुजरती होगी। उसकी खोई इज्जत कभी वापस नहीं मिल सकेगी, यह सोचकर उसके मन में यही विचार आता होगा कि क्यों न सारी व्यवस्था को आग लगा दूं। उसे कभी-कभी समाज के ताने भी सुनने पड़ते हैं। उसके मन की पीड़ा वही समझ सकती है। दुष्कर्म की घटनाओं पर कैसे रोक लगे, यह एक विचारणीय बिंदु है। कहने को तो देश में मौजूद कानून में दुराचारियों के खिलाफ सख्त से सख्त सजा दिए जाने का प्रावधान है, लेकिन कानून के रखवालों की नीयत ठीक हो तब न। जब कोई पीड़ित महिला न्याय पाने की उम्मीद से पुलिस स्टेशन की सीढ़ियां चढ़ती है तो वहां बैठे कानून के रखवाले उससे घिनौने सवाल पूछते हैं, जिन्हें सुनकर शर्म भी शायद शर्मसार हो जाए। बांदा के शीलू कांड में पुलिस की भूमिका को लोग कैसे भूल सकते हैं कि किस तरह इस कांड में आरोपी सत्तारूढ़ पार्टी के एक माननीय विधायक को बचाने के लिए पीड़ित-प्रताड़ित शीलू को ही उल्टे चोरी के इल्जाम में जेल भेज दिया था। वह तो भला हो मीडिया का, जिसकी सक्रियता के चलते शीलू को न्याय मिल सका। 

तान्या कांड में भी पुलिस का यही चेहरा सामने आया। सत्तारूढ़ दल के लोगों की जी-हुजूरी में लगी रहने वाली पुलिस ने देशभर में न जाने कितनी शीलू और तान्या को न्याय मिलने से वंचित कर दिया होगा। रसूखदार लोगों के ऐसे किसी कांड में शमिल होने पर समाज भी खामोशी की चादर ओढ़ लेता है। पुलिस और समाज के इस रवैए के कारण असामाजिक तत्वों के हौसले बढ़ते जा रहे हैं। नतीजतन, आधी आबादी के साथ छेड़छाड़ और दुष्कर्म की शर्मनाक घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं। रही बात राजनेताओं की तो वे भुक्तभोगी महिलाओं के घर जाकर गहरी सहानुभूति प्रकट करते हैं। वे कानून व्यवस्था को दोषी ठहराते हैं और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही की मांग करते हैं। ऐसी घटनाओं को शर्मनाक, अमानवीय और जघन्य अपराध बताते हुए चिंता जाहिर करते हैं। यदि उन्हें लगता है कि अमुक कांड से उन्हें सियासी फायदा मिल सकता है तो वे पीड़ित महिला व उसके परिवार की आथिर्क मदद भी कर देते हैं। यही सब मंजर तान्या कांड में भी देखने को मिल रहा है। केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद भी यहां आ चुके हैं, क्योंकि यह कांड उनके गृह क्षेत्र का है। उन्होंने कहा था कि ऐसे कांडों को अंजाम देने वाले दरिंदे हमारे समाज में ही रहते हैं, यहीं पल कर वह हम पर ही प्रहार करते हैं। इनको संरक्षण देनेवालों को उन्होंने जानवर की संज्ञा दी थी। लेकिन आधी आबादी की सुरक्षा कैसे होगी, इस सवाल का जवाब नहीं मिल रहा है। 

कानून के रखवालों ने तो निराश ही कर रखा है। रही बात जन प्रतिनिधियों की तो उनसे भी ज्यादा उम्मीद नहीं है, क्योंकि कुछ माननीयों के दामन पर भी ऐसे कुकृत्य में लिप्त होने या फिर ऐसे दरिंदों को संरक्षण देने के दाग लगे हैं। ऐसी स्थिति में एक ही रास्ता बचता है कि अपनी सुरक्षा स्वयं करो के सिद्घांत को अपनाते हुए नारी उठ खड़ी हो। वह अपने मन से दीनता व हीनता के भाव को निकाल फेंके। नारी को अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी, आंचल में है दूध और आंखों में पानी.. की छवि से छुटकारा पाना होगा। वह अपनी शक्ति को पहचाने। उसे यह भी सिद्घ करना होगा कि वह बेटी, बहन और ममतामयी मां के अलावा जरूरत पड़ने पर दुर्गा का रूप भी धारण करना जानती है। वह इतिहास में दर्ज बहादुर नारियों के जीवन से सबक ले, वह गुलाबी गैंग की कमांडर संपत पाल से भी सीख ले। उसे अपना मनोबल इतना ऊंचा करना होगा कि पत्थरों से भी टकराने में पीछे नहीं हटे। पश्चिमी सभ्यता को ओढ़ने और बिछाने की प्रवृत्ति को छोड़ना होगा। जिस दिन भारतीय नारी यह सब करने में सक्षम हो जाएगी, उसी दिन से छेड़छाड़ और दुष्कर्म की घटनाओं में कमी आएगी.

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