Wednesday, March 2, 2011

विडंबना


अगर बेटियों का अस्तित्व ही दुनिया से खत्म होने लगेगा, तब तो धीरे-धीरे सृष्टि भी खत्म हो जाएगी। क्या हमने यह बात कभी नहीं सोची? अकेले बेटे से तो घर नहीं बसाया जा सकता, उसके लिए भी बेटियों का होना बहुत जरूरी है
कितनी बड़ी विडंबना है हमारे देश की, कि हम जिस बेटी को पैदा होते ही बोझ समझ बैठते हैं, उसी बोझ के साथ हम सारी जिंदगी भी बिताना चाहते हैं। बचपन से लेकर मरने तक वही लड़की अलग-अलग रूप लेकर हमारा साथ भी निभाती चलती है। जिसके बिना आदमी एक पल भी नहीं गुजार सकता और कुछ लोग उसी बेटी का अपने घर में आगमन करते ही कभी अपनी मुसीबत, कभी बोझ समझ कर जीते जी मार डालना चाहता है। कितने नासमझ हैं, वे इंसान जो इतनी बड़ी हकीकत को नहीं समझ पाते या फिर यह कहो कि समझना ही नहीं चाहते और उससे अपना पीछा छुडाना चाहते हैं। उनकी नकारात्मक सोच उसके दहेज को लेकर होने वाली परेशानी और समाज की अन्य कुरीतियों को लेकर उसके साथ जोड़कर सोचना, उसके कमजोर व्यक्तित्व का परिचय ही तो देती है। उसकी संगिनी उसके साथ हर हाल में रहकर भी ऐसा कभी नहीं सोचती। वह हिम्मत से उसका सामना करने को हमेशा तैयार रहती है पर उसे मारने को कभी नहीं कहती। आदमी क्या इतना कमजोर और आलसी भी हो सकता है कि जिंदगी में जो परेशानी बाद में आने वाली हो, उससे डरकर वो एक ऐ से मासूम का खून बहा दे, जिसने अभी दुनिया में कदम भी नहीं रखा है। यह भी तो हो सकता है कि नहीं, ऐसा हो भी रहा है कि वही बेटी आज मां-बाबा का सहारा बनी हुई है और उनकी परवरिश कर रही है। आज बेटियां बेटों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं, उनमें इतनी ताकत है कि वे अपने साथ अपने पूरे परिवार को पाल सकने की हिम्मत रखती है। अब देखो न, बेटियां बचपन से ही अपने अहसास को किस कदर बनाये रखती हैं। कभी बहन बनकर भाई का साथ देती हैं तो कभी सुखदुख में मां-बाप की भावनाओं को समझती हैं। फिर शादी के बाद अपने पति के परिवार को भी वही खुशी देती है और जीवनभर उसका साथ भी निभाती है। फिर यह सब करके वह ऐसा कौन सा गुनाह करती हैं कि कुछ के दिलों तक उनकी ये भावनाएं पहुंच ही नहीं पातीं और उनके दिल में इनको मारने का ख्याल आ जाता है। तो यही लगता है कि जो भी इसकी हत्या के बारे में सोचता होगा या तो वह दिमागी तौर से ठीक नहीं होता होगा या फिर उसके दिल में उसके प्रति कोई भावना ही नहीं होती होगी। वरना जो इतनी बखूबी से अपना कर्तव्य निभाती हो, उसे जन्म लेते ही मार डालने का ख्याल उसके दिल में कभी नहीं आ सकता। हमें ही मिलकर इसके विरुद्ध आवाज उठानी होगी, नहीं तो ऐसी बहुत सी मासूम जानें जो जन्म से पहले ही कुचल दी जाती हैं, मरती रहेंगी, सिर्फ हमारी नकारात्मक सोच की वजह से ही। हमें अपनी सोच बदलनी होगी, जिससे उन पर होने वाले अत्याचारों को रोका जा सके। अगर बेटियों का अस्तित्व ही दुनिया से खत्म होने लगेगा, तब तो धीरे-धीरे सृष्टि का भी अंत हो जाएगा। क्या यह कभी नहीं सोचा हमने? क्यों कि अकेले बेटे से तो घर को नहीं बनाया जा सकता। उसके लिए बे टियों का होना बहुत जरूरी है, इसीलिए हमें सच्चाई को न झुठलाते हुए उसका सामना करना होगा और बेटियों को भी बेटों की तरह बराबर का सम्मान देना ही होगा। यह कहने में उस वक्त भी गलत नहीं थी, जब बेटियों को ना के बराबर समझा जाता था कि उसका अधिकार तब भी उतना ही था, जितना उसने आज अपने हक से हासिल किया है। यदि हम यह कहें कि अगर आदमी शरीर है तो औरत उसकी आत्मा। फिर उनको अलग कैसे कम आंका जा सकता है? मेरा कहने का तात्पर्य यह है कि दोनों की तुलना बराबर ही होनी चाहिए। जितना हक बेटे का, उतना ही बेटी का भी हो और अगर इनके अनुपात में ऐसे ही अंतर आता गया तो वह दिन दूर नहीं, जब इस सृष्टि का ही अंत हो जाएगा। इसलिए उसके एहसास को समझो और उसे भरपू र प्यार दो, जिससे उसके दिल से प्यारशब्द ही खत्म न हो जाये। इसके लिए हमें उसे और उसके प्यार और बलिदान को समझना होगा और एक सकारात्मक सोच रखनी ही होगी, जिससे वह सबके साथ अपना यह प्यार इसी तरह बनाये रखने की हिम्मत न खो दे! बाकी आप खुद ही समझदार हैं दोस्त।

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