Wednesday, March 2, 2011

स्त्री विरोधी वक्तव्य


सभ्य समाज में यह कल्पना नहीं की जा सकती कि कोई भद्र व्यक्ति किसी महिला पायलट को यह कह कर अपमानित करेगा कि इनसे घर तो संभाला नहीं जाता, ये हवाई जहाज क्या उड़ाएंगी? दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर एक निजी एयरलाइंस से मुम्बई जा रहे प्रमोद नाम के यात्री ने यह सुनते ही हड़कम्प मचा दिया कि फ्लाइट की पायलट महिला है। कोई आदमी इतनी छोटी और दकियानूस सोच के साथ आज के समाज में कैसे रह सकता है जिसके अनुसार महिलाओं का काम केवल घर संभालना ही है? दुनिया भर के सरकारी और कारपोरेट्स में जिस तेजी के साथ औरतें अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन कर रही हैं, उन्हें देखते हुए तो यह कहना गलत नहीं लगता कि आने वाला समय औरतों का ही है। एक ऐसा पुरुष जो घरेलू यात्रा के लिए भी हवाई मार्ग चुनता है, उसे अपढ़ तो नहीं माना जा सकता, फिर उसको महिलाओं की सफलता को लेकर कोई संदेह क्यों होता है? तय रूप से हवाई जहाज उड़ाना कोई साधारण ड्राइविंग सरीखा काम नहीं है, न ही एयर पायलट ब्लू लाइन बसों के कोई ड्राइवर होते हैं जो अपने नौसिखिएपन और उपद्रवी स्वभाव का प्रदर्शन सड़कों पर करते हुए दो-चार को कुचलकर मारने को स्वतंत्र होते हैं। प्रखर मेधा, कड़े अनुभवों और जटिल परीक्षा तथा परीक्षणों के बाद ही कोई पायलट या को-पायलट होता है। इसलिए उस यात्री का यह वक्तव्य दुर्भाग्यपूर्ण ही नहीं, स्त्री विरोधी भी है, जो उनको घर संभालने में उलझाए रखने की नीयत से बोला गया। दूसरे, महिला पायलट की क्षमता को कमतर आंकने और उसका सार्वजनिक उपहास करने के खिलाफ भी उस यात्री पर कार्रवाई होनी चाहिए। महिला आयोग की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह तमाम प्रोफेशनल महिलाओं के सम्मान की रक्षा में, इस व्यक्ति पर मानहानि का मामला दायर करे। पता नहीं क्या सोच कर निजी एयरलाइंस के कम्पनी प्रबंधन ने ऐसी अभद्र टिप्पणी करने वाले के खिलाफ शिकायत तक नहीं दर्ज करायी? यह कहना जायज नहीं लगता कि काफी समझाने-बुझाने के बाद उसने माफी मांग ली थी। उसकी यह सोच काफी खतरनाक और स्त्री विरोधी है। खतरा इसी नकारात्मक और रूढ़िग्रस्त सोच से है। लिहाजा, इसको जड़ से उखाड़ फेंकने और सकारात्मक रूप से इसका इलाज किये जाने की जरूरत से इनकार नहीं किया जा सकता। ऐसे में इस तरह की विचारधारा वालों को बिना किसी चेतावनी के छोड़ना संक्रमण को लगातार पनपते रहने की गुंजाइश देना ही है। ऐसा जरूर है कि पुरुषों में कहीं न कहीं स्त्रियों को प्रतिस्पद्र्धी के तौर पर देखने की प्रवृत्ति नजर आती है परंतु प्रतिस्पर्धा काम और क्षमताओं को लेकर हो तो उत्पादकता के लिए बेहतर साबित हो सकती है।


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