Sunday, March 6, 2011

रस्मी न रह जाए महिलाओं पर चिंता


मेरे ख्याल से महिलाओं को खुद अपनी क्षमता आंकनी होगी। जो महिलाएं कामकाजी नहीं हैं उन्हें खुद को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कोई न कोई व्यावसायिक प्रशिक्षण हासिल करना चाहिए। उन्हें कारोबार सीखना चाहिए। उन्हें मार्केटिंग और बैंकिंग में अपने पांव मजबूत करने चाहिए। सबसे बड़ी जरूरत महिलाओं को पहले अपनी स्थिति सुधारनी है और उसके बाद उन्हें दूसरों की मदद के लिए भी आगे आना है। इसके लिए उन्हें इसी 8 मार्च से अपनी शुरुआत कर देनी चाहिए
आठ मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के नजदीक आते ही, हरेक साल महिला की समस्याओं और उससे जुड़ी चिंताओं की बात होने लगती है। दिवस के एक सप्ताह पहले और एक सप्ताह बाद तक समाज में महिलाओं की स्थिति, कन्या भ्रूण हत्या, लड़कों के मुकाबले लड़कियों की उपेक्षा, अहम जगहों पर महिलाओं की नगण्य उपस्थिति, संसद में अरसे से लंबित 33 प्रतिशत महिला आरक्षण बिल, ग्राम पंचायतों में महिलाओं का प्रदर्शन, महिला सुरक्षा और महिलाओं पर होने वाले अपराधों पर सेमिनार और बैठक इस साल भी होंगे। लेकिन मेरे ख्याल से, इस साल इन सबके अलावा एक ठोस योजना की जरूरत है जिसके जरिए महिलाएं अपने सामूहिक शक्ति को समझें और अहम समस्याओं के निपटारे के लिए एक मंच पर एकत्रित हो सकें। इसमें एक निश्चित तौर पर भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम हो सकती है। चाहे वह छोटे स्तर पर ही क्यों न हो, चाहे वह प्रशासन में हो या फिर राजनीति, कहीं भी महिलाओं को भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई शुरू करनी चाहिए क्योंकि मुझे लगता है कि देश की ज्यादातर समस्याओं की जड़में यही भ्रष्टाचार काम कर रहा है। इसी भ्रष्टाचार की मार आम लोगों पर पड़ती है। इसके कारण ही सरकारी कमर्चारी अपनी सेवाओं के प्रति प्रतिबद्ध नहीं रह पाता है। इसके कारण ही वह हमेशा बाहरी कमाई पर ध्यान देने लगता है। अब तक महिलाएं इस दिशा में सक्रिय नहीं हुई हैं लेकिन मुझे लगता है कि अब वक्त आ गया है जब महिलाओं को भी इस तरह की लड़ाइयों के मुख्य स्टेज पर आना चाहिए। महिलाओं की सक्रियता से ही हम समाज में स्वच्छ और साफ-सुथरे प्रशासन को ला सकते हैं। इसलिए मैं तो चाहती हूं कि इस महिला दिवस पर महिलाएं कुछ संकल्प लें। मसलन, प्रत्येक महिला यह तय कर ले कि उसे प्रशासन और सरकारी कामकाज के सम्बन्ध में अपनी जानकारी बढ़ानी है। इसके लिए उन्हें समाचार सुनना होगा, बहसों को सुनना होगा, समाचार पत्र-पत्रिकाएं पलटनीं होंगी। महिलाओं को हर हाल में अपनी राजनीतिक, आर्थिक, और कानूनी मसले पर अपनी जानकारी को बेहतर करना होगा। उन्हें राजनीति में क्या हो रहा है, अदालतों में क्या हो रहा, सामाजिक संगठन किस मुद्दे की बात कर रहे हैं, इन्हें न केवल जानना होगा बल्कि उन्हें समझना भी होगा। ग्रामीण इलाकों में रह रहीं महिलाओं को नवीनतम सरकारी ग्रामीण योजनाओं की जानकारी होनी चाहिए ताकि वे इन योजनाओं से मिलने वाली सुविधाओं की मांग कर सकें और उसका फायदा उठा सकें। उन्हें यह काम अपने दम पर करना होगा ताकि कोई उनके साथ धोखाधड़ी न करे। स्वंय सेवी सहायता समूह बनाकर उसके जरिए खुद को सक्रिय बनाना होगा। शहरी महिलाओं को अपनी वार्ड की राजनीति तक पर ध्यान देना होगा। वे किस सदस्य को अपना प्रतिनिधि बना रही हैं और वह शख्स उनके इलाके में क्या-क्या काम कर सकता है, इस पर ध्यान देना होगा। आप जिसे मत देकर अपना प्रतिनिधि चुनती हैं, उसका काम है कि वे आपके इलाके में स्कूल की समुचित व्यवस्था कराए। एक कूड़ा घर बनाए, सफाई कर्मचारियों की मौजूदगी सुनिश्चित करें, नियमित पानी और बिजली की आपूर्ति, सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था, पुलिस बल की तैनाती, व्यावसायिक प्रशिक्षण की सुविधा और स्वास्थ्य केंद्र का लाभ मुहैया कराए। समाज में एक राय यह भी है कि महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों में दोषियों को जल्दी सजा नहीं मिल जाती है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि कानून अपना काम नहीं कर रहा है। जहां तक कानून की बात है तो मैं तो महिलाओं से अपील करती हूं कि वे बस दो ही कानून का ख्याल रखें। सरकारी कामकाज का उत्तरदायित्व को सुनिश्चित करने के लिए सूचना का अधिकार और घरेलू हिंसा निषेध कानून। इन दो कानूनों से सामाजिक स्तर पर महिलाओं को कहीं ज्यादा ताकतवर बनाया जा सकता है। इसके लिए जरूरी है कि महिलाएं इन दोनों कानूनों की मोटी-मोटी बातों को बेहतर ढंग से समझ लें। मुझे लगता है कि महिलाएं अगर इन दोनों कानूनों का इस्तेमाल करने लगेंगी उस दिन उन पर होने वाले अपराध अपने आप काफी कम हो जाएंगे। महिलाएं अगर चाहें तो अपने युवा बच्चों को भी सशक्त बना सकती हैं। उन्हें अपने बच्चों को समुचित शिक्षा देकर सशक्त बनाने की कोशिश करनी चाहिए। स्कूलों में भी प्राथमिक स्तर पर ज्यादातर शिक्षकें महिलाएं होती हैं। वे जिस तरह की शिक्षा बच्चों को देंगी, वैसा ही भविष्य भारत का बनेगा। तो मेरे ख्याल से इस साल महिलाओं को खुद अपनी क्षमता आंकनी होगी। जो महिलाएं कामकाजी नहीं हैं उन्होंने खुद को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कोई न कोई व्यावसायिक प्रशिक्षण हासिल करना चाहिए। उन्हें कारोबार सीखना चाहिए। मार्केटिंग और बैंकिंग में अपने पांव मजबूत करने चाहिए। इस दिशा में स्वयंसेवी सहायता समूह बेहतर कर सकते हैं। हमें यह समझना होगा कि देश की सभी महिलाओं की हालात एक समान नहीं है। कुछ को अवसर मिलते हैं तो कुछ तक पहुंचते ही नहीं। जिन्हें मिलते हैं, उन्हें इसका पूरा फायदा उठाना चाहिए। जिन तक नहीं पहुंचते हैं, उन्हें अवसर तक पहुंचना होगा। उन्हें अवसर की मांग करनी होगी। सबसे बड़ी जरूरत महिलाओं को पहले अपनी स्थिति सुधारनी है और उसके बाद उन्हें दूसरों की मदद के लिए भी आगे आना है। इसके लिए उन्हें इसी 8 मार्च से अपनी शुरुआत कर देनी चाहिए।


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