Sunday, March 6, 2011

स्त्री बराबरी कैसे कर सकती है?


नारी की वर्तमान स्थिति कतई समानता की सूचक नहीं है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15(3) के अन्तर्गत महिला सुधार और संरक्षण के लिए अनेक अधिनियम बनाये गये और 9 मार्च 2010 को राज्यसभा से महिला आरक्षण बिल भी पारित हुआ, लेकिन ‘’, ख ग और घ के समान अनेक महिला हैं, जिनका संघर्ष भारतीय समाज में आज भी प्रथम चरण का है और वह है-‘मुझे स्वीकार करो। मैं भी एक व्यक्ति हूं
क आधुनिक भारतीय नारी है। उम्र 27 साल, विवाहित और आर्थिक रूप में स्वावलम्बी। उसकी शादी 2007 में हुई थी। शादी के बाद एक पुत्र हुआ और उसे शिक्षा-मित्र की नौकरी मिली। अपने दूध पीते बच्चे को छोड़कर जब वह घर से बाहर नौकरी करने निकली तो घर लौटकर उसे मिला ‘घर-निकाला’। इसके पहले जमकर उसकी पिटाई हुई। कुछ दिनों बाद उसके खिलाफ पति ने तलाक का मुकदमा किया। क ने भी अपनी पिटाई, ‘घर-निकाला’
को वर्णित करते हुए दहेज की मांग के लिए पति सास-ससुर के खिलाफ 498(अ) भारतीय दंड संहिता के तहत घरेलू हिंसा कानून और बेटे के लिए गुजारा भत्ता की मांग करते हुए मुकदमा दायर किया। सारे मुकदमे न्यायालय में लंबित हैं। ‘’ का आंशिक आर्थिक स्वावलम्बन, पुत्र के साथ मायके में रहने को समाज ने एक झगड़ालू महिला होने का नतीजा बतलाया। ज्यों-ज्यों मुकदमा बढ़ता गया उसकी सामाजिक मान्यता कम होती गई। ख लंदन में नौकरी करने वाली, लंदन से ही पढ़ी हुई एक वैसी भारतीय नारी है, जिसने अखबार में विज्ञापन देकर सन् 2010 में एक प्रवासी भारतीय से शादी की। पति 14 साल की उम्र से ही अमेरिका में पले-बढ़े थे और शादी के समय हांगकांग के बैंक में एक ऊंचे पद पर कार्यरत थे। जुलाई 2010 में भव्य तरीके से उनकी शादी हुई। शादी के बाद पति-पत्नी विदेश चले गये। हनीमून के तुरंत बाद पति ने पत्नी के बैंक-बैंलेंस की पूछताछ शुरू की और जब यह पता चला कि बैंक-बैंलेंस औसत है तो पति के व्यवहार में परिवर्तन आने लगा। ‘’
ने आदर्श भारतीय नारी की तरह ‘घरेलू-महिला’ बनकर जीने का निर्णय किया। पति की नाराजगी कुछ और बढ़ गयी। ‘’ की पाक-कला भी पति को रास नहीं आयी। जब जानकारी न होने के कारण उसने जन्माष्टमी के दिन ‘चिकेन’ बनाया और खाया तो पति की नाराजगी चरम पर पहुंच गई और पति ने ‘’ से सम्बन्ध-विच्छेद की घोषणा करते हुए भारत के न्यायालय में तलाक का केस दाखिल कर दिया। शादी के मात्र 7 महीने बाद। हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 के अंतर्गत विवाह के एक साल के बाद ही तलाक का मुकदमा दर्ज होता है लेकिन पति से एक साल पूरा करना भी सम्भव नहीं हो पाया। ‘’ ने कानूनी सलाह देकर दहेज-विरोधी अधिनियम, पति और उसके सम्बन्धियों से प्रताड़ना और घरेलू हिंसा की रोकथाम के अधिनियम के अंतर्गत मुकदमा दर्ज करने का फैसला लिया है। अभी तक ‘’ को समाज के किसी विशेषण से अलंकृत नहीं किया गया है लेकिन एक आदर्श पत्नी और घरेलू- महिला की पर्याप्त सजा उसके पति से उसे मिल चुकी है। ‘’ एक औसत वर्ग की औसत शिक्षा प्राप्त नारी थी परंतु औसत नारी से अधिक सुन्दर और आर्थिक रूप से पूर्ण स्वावलम्बी थी। उसके स्वतंत्र जीने के अंदाज को उसके माता-पिता ने विरोध किया तो वह अलग रहने लगी। किसी पुरुष दोस्त ने आखिरकार समाज का ‘कल्याण’ करने के उद्देश्य से ऐसी स्वतंत्र नारी की हत्या कर दी। हत्या के दो सप्ताह बाद उसके पिता ने उसकी बरामद लाश की शिनाख्त अपनी बेटी के रूप में की। मुकदम दर्ज हो चुका है और तफ्तीश जारी है। भारतीय समाज में ऐसी ‘चरित्रहीन’ नारी को जीने का अधिकार ही नहीं था। ‘’ एक कॉल सेंटर में काम करती थी। नाइट ड्यूटी की शिफ्ट में उसकी छुट्टी रात के दो बजे होती थी और कॉल सेंटर की गाड़ी उसके घर के समीप रात को तीन-साढ़े तीन बजे छोड़ती थी। रात की गश्ती और रात में मटरगश्ती करने वाले दोनों ही वर्ग के लोग उसे जानते थे। उसे आधुनिक नारी की पूर्ण परिभाषा प्राप्त थी। विदेशी कपड़े, विदेशी रहन-सहन और आखिरकार मटरगश्ती करने वाले युवकों ने एक रात चलती गाड़ी में से खींचकर उसका रेप कर दिया। एक सुनसान स्थान पर बेहोश अवस्था में छोड़ कर चलते बने। एक सप्ताह बाद एक आरोपित गिरफ्तार हुआ। मुकदमा कोर्ट तक पहुंच गया। साक्ष्य के लिए लड़की कोर्ट में प्रस्तुत नहीं हुई और कोई चश्मदीद गवाह नहीं होने के कारण इकलौते आरोपी को बरी कर दिया गया। इस निर्णय के खिलाफ राज्य ने कोई अपील फाइल नहीं किया। क ख ग और घ चारों ऐसी भारतीय नारी हैं जिन्होंने हर आधुनिक त्योहार जैसे बेलेन्टाइन डे और वूमेन्स डे में हिस्सा लिया है और अपना योगदान दिया है। आधुनिक भारतीय समाज में ये नारियां उपेक्षित और असुरक्षित हैं। नारी की वर्तमान स्थिति कतई समानता का सूचक नहीं है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15(3) के अन्तर्गत महिला सुधार और संरक्षण के लिए अनेक अधिनियम बनाये गये और 9 मार्च 2010 को राज्यसभा से महिला आरक्षण बिल भी पारित हुआ, लेकिन ‘’, ‘’, ‘’ और ‘’ के समान अनेक महिला हैं, जिनका संघर्ष भारतीय समाज में आज भी प्रथम चरण का है और वह है-‘मुझे स्वीकार करो। मैं भी एक व्यक्ति हूं।’
प्राचीन काल में कुछ हद तक नारी विशेष को समाज में स्थान और सम्मान दोनों प्राप्त था। प्रात: स्मरणीय प्राचीन नारी आज भी आदर्श और पूजनीय हैं क्योंकि उन्होंने अत्याचार और अन्याय का विरोध त्याग और बलिदान से कियाकि सी ने पुत्र को खोकर तो किसी ने पवित्रता की परीक्षा देकर। द्रौपदी ने एक प्रश्न कियाना री व्यक्ति है या वस्तु? उसका उत्तर न मिलने के बाद उसने प्रतिशोध में अपना केस खोल दिया। 13 वर्ष पश्चात् जब द्रौपदी के पतियों के साथ अन्याय हुआ, महाभारत का युद्ध उसका परिणाम हुआ, महाभारत का युद्ध उसका परिणाम हुआ। प्राचीन काल का युद्ध और आज के विवाद में कोई भूल-चूक परिवर्तन नहीं रहा है- पंचायत हो, थाना हो या न्यायालय हो, हार अधिकतर आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग का होता है। पुरुष-नारी विवाद में कमजोर वर्ग प्राय: नारी होती है। भारतीय संस्कृति में नारी शक्ति रूप में विदित है और यहां तक की शक्तिविहीन शिव ‘शव’ है। प्राचीन निर्देश था, ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता:’ लेकिन जिन नारियों को पूजा के योग्य स्थान दिया गया है, उनकी विवशता और असहायता की पूजा एक परम्परा सी बन गई है। सीता का अग्नि में स्वेच्छा से प्रवेश करना, अहिल्या का निर्जीव रूप में परिवर्तित होना, मन्दोदरी का पति-विवाद के बावजूद महारानी बनकर जीना, कुन्ती के विवाह से पूर्व प्राप्त पुत्र का जल प्रवाह करना, यह पूजनीय बनने के गुण थे। असहायता पूजनीयता का आधार है। प्राचीन नारी को ज्ञान रूप में, शक्ति रूप में और धन व सम्पदा की अधिष्ठात्री माना गया है। नारी तुम केवल श्रद्धा हो पूजनीय हो किन्तु असमान हो। जहां प्राचीन नारी एक ऊंचे आसन पर सुसज्जित थी; वहीं आधुनिक नारी समाज में अपना स्थान ढूंढ़ रही है। नवरात्र में जहां धार्मिक प्रवृत्ति वाले कुमारी पूजन करते हैं तो वही समाज कन्या-भ्रूण हत्या को अपराध नहीं मानता है। आज भी नारी की संख्या पुरुष की अपेक्षा कम है। कागजी तौर पर नारी का प्रतिनिधित्व अवश्य बढ़ गया है। बिजनेस में उनकी बढ़ी तादाद का कारण है इनकम टैक्स में छूट, सम्पत्ति का रजिस्ट्रेशन नारी के नाम पर होने का कारण है स्टाम्प ड्यूटी पर छूट। गांव, पंचायत और वार्ड के स्तर पर एक महिला के आवश्यक प्रतिनिधित्व के कारण यद्यपि सत्ता पर्दे के पीछे पति, पिता या भाई का होता है लेकिन नारी को घर से बाहर जाने का अवसर मिलता है। इसके अलावा कन्या-जन्म पर राजकीय कोष से अनुदान, विधवा पेंशन इत्यादि अवश्य नारी सशक्तिकरण की ओर अग्रसर कदम हैं। संवैधानिक समानता आज भी एक सुन्दर परिकल्पना है।


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