Sunday, March 6, 2011

सबसे जरूरी है लड़कियों को शिक्षित करना


भारत में महिलाओं की ज्यादातर समस्याएं दूर हो सकती हैं। इनके लिए तीन अहम पहलुओं पर ध्यान देने की जरूरत है। कन्या भ्रूण हत्या को रोकना सबसे बड़ी चुनौती है। इसे लेकर बने कानून को सख्ती से लागू किए जाने की जरूरत है। समाज में लड़कियों को पढ़ायािलखाया जाए और देर से शादी की जाए। जल्दी शादी की मानसिकता से महिलाओं के लिए कई तरह की मुश्किलें खड़ी हो जाती हैं। तीसरी अहम बात लड़कियों को हर हाल में शिक्षित करना चाहिए और उन्हें जागरूक करना चाहिए
एक ओर भारत दुनिया में तेजी से विकास कर रहे देश के तौर पर अपनी पहचान मजबूत कर रहा है, इसकी अर्थव्यवस्था की गिनती दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में की जा रही है, मिडिल क्लास में शामिल लोगों की तादाद बढ़ रही है, लेकिन दूसरी ओर मानव विकास सूचकांक के पैमाने पर अभी भी देश में काफी कुछ किया जाना बाकी है। मसलन, भारत दुनिया के सबसे कुपोषित देशों में एक है, यहां शिशु मृत्यु दर और मातृ मृत्यु दर भी अधिक है। दुनिया भर में हर साल प्रसव के दौरान 5 लाख महिलाओं की मौत होती है, इसमें एक चौथाई भारत में होती है। एक साल से कम उम्र के दौरान एक हजार में 53 बच्चों की मौत हो जाती है। साफ और सफाई के नहीं होने से फैलने वाले संक्रमण बीमारियों के लिहाज से भी स्तर में काफी सुधार की जरूरत है। शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में यह देश अभी भी विकासशील देशों की कतार में खड़ा है। भारतीय महिलाओं के लिए यहां समस्याएं कुछ ज्यादा ही हैं। यहां लड़कियां जन्म होने से पहले मार दी जाती हैं और जन्म होने के साथ उन्हें ताउम्र भेदभाव का सामना करना पड़ता है। घर में भाई को ज्यादा तरजीह मिलती है। कम उम्र में ही उनका यौन शोषण होता है, बाल विवाह और दहेज के लिए हत्या जैसी कुरीतियां भी बनी हुई हैं। दरअसल, भारत में महिलाओं की समस्याओं का वर्गीकरण कई तरह से हो सकता है। घर-परिवार से लेकर उन्हें कामकाजी क्षेत्र में हर वक्त चुनौतियों का सामना करना होता है। ज्यादातर समस्याएं दूर हो सकती हैं। इनके लिए तीन अहम पहलुओं पर ध्यान देने की जरूरत है। कन्या भ्रूण हत्या को रोकना सबसे बड़ी चुनौती है। इसको लेकर कानून बन चुका है लेकिन उसे सख्ती से लागू किए जाने की जरूरत है। समाज में परंपरागत तौर पर माना जाता है कि लड़कियां बोझ हैं। इस मान्यता को तमाम विकास के बाद भी बदला नहीं जा सका है। लड़कियों को पराया धन समझा जाता है। माना जाता है कि शादी के बाद यह दूसरे घर में चली जाएगी। इसी सोच के तहत उनके साथ हर कदम पर भेदभाव होता है। उन पर होने वाले खर्च को धन की बर्बादी माना जाता है। यूएन डेवलपमेंट प्रोग्राम की लैंगिक असमानता की सूची के 169 देशों में भारत 119वें स्थान पर है। समाज में लड़कियों की पढ़ाई-लिखाई के बजाए जल्दी से उनकी शादी कर देने पर जोर दिया जाता है। इस एक मानसिकता से समाज में महिलाओं के लिए कई तरह की मुश्किलें खड़ी हो जाती हैं। तीसरी अहम बात लड़कियों को हर हाल में शिक्षित करना होना चाहिए। वैसे तो भारत में 1929 से ही बाल विवाह पर कानून रोक है लेकिन आज के समय में भी 18 साल की उम्र में आधी लड़कियों का विवाह हो जाता है। वे कम उम्र में ही मां बन जाती हैं, इस दौरान वे अपने साथ अपने बच्चे के भविष्य को भी खतरे में डालती हैं। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के मुताबिक भारत में 19 साल से कम उम्र में मां बनने के दौरान हर 6000 लड़कियों की मौत होती है। 20 साल से कम उम्र की मांओं के नवजात शिशुओं की मृत्यु की आशंका 20 साल से ज्यादा उम्र की मांओं के बनिस्बत 50 फीसद ज्यादा होती है। देश की ज्यादातर महिलाओं में पढ़ाई के अभाव के चलते जागरूकता की कमी होती है, लिहाजा वे स्वास्थ्य सम्बन्धी मुश्किलों का सामना बेहतर ढंग से नहीं कर पाती। यही वजह है कि प्रसव के दौरान मां और बच्चे की होने वाली मौत के मामले देश में ज्यादा देखने को मिलते हैं। ज्यादातर औरतें मां बनने के दौरान एनीमिया से पीड़ित होती हैं, जो जानलेवा साबित होता है। देश भर में कई तरह की स्वास्थ्य योजनाएं काम कर रही हैं लेकिन ज्यादातर लोग जागरूकता के अभाव में उस तक पहुंच ही नहीं पाते हैं। हालांकि व्यवस्थागत खामियां भी मौजूद हैं और सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार भी मौजूद है लेकिन असली समस्या जागरूकता से जुड़ी है, जब तक आम महिलाएं जागरूक नहीं होंगी, वे सरकारी योजनाओं का फायदा नहीं उठा सकतीं। बहरहाल, महिलाओं की मुश्किल काफी हद तक कम हो सकती है, लेकिन इसके लिए हमें उन्हें शिक्षित बनाने पर जोर देना होगा। यूनिसेफ ने दुनिया भर के बच्चों की स्थिति पर 2011 की रिपोर्ट हाल में ही जारी की है, इस रिपोर्ट में हमने पाया है कि अगर किशोरावस्था से लड़कियों की शिक्षा और जागरूकता का ध्यान रखा जाए तो हम कम से कम अगली पीढ़ी को ज्यादा स्वस्थ्य और सुरक्षित बना सकते हैं। देश की एक चौथाई आबादी की उम्र 10 से 19 साल के बीच है। अगर इस आबादी की लड़कियों को हम शिक्षित बनाएं तो निश्चित तौर पर उनका परिवार कहीं बेहतर स्थिति में होगा। इस दिशा में ‘सबको शिक्षा का अधिकार कानून’ एक अहम भूमिका अदा कर सकता है।

No comments:

Post a Comment